सशस्त्र सेनाओं के अधिकारियों के लिए नई प्रमोशन नीति की घोषणा में व्यवस्था की गई है कि भ्रष्ट, नैतिक रूप से दागदार और रणभूमि में कायरता दिखाने वाले अफसरों को किसी भी सूरत में तरक्की नहीं दी जाएगी। रक्षामंत्री एके. एंटनी ने इस नई प्रमोशन नीति को मंजूरी दी है और यह 1 जनवरी, 2009 से लागू मानी जाएगी। नई नीति में प्रमोशन चयन बोर्ड की भूमिका को कम से कम किया गया है और प्रक्रियाओं को इतना परिभाषित किया गया है कि मनमानेपन की गुंजाइश लगभग नहीं रहेगी।
पक्षपात की सम्भावना को यथा सम्भव समाप्त किया गया है और यह सुनिश्चित किया गया है दागदार अफसरों को किसी भी सूरत में तरक्की नहीं मिल पाए, भले ही प्रदर्शन मानकों में उन्होंने कितने ही अंक क्यों न कमा लिए हों। उल्लेखनीय है कि यह नई नीति उच्चतम न्यायालय के निर्देशों और उच्च न्यायालय के एक 2004 के फैसले में की गई टिप्पणियों को देखते हुए की गई है।
नई नीति को इस तरह गढ़ा गया है कि कानून की कसौटी पर प्रमोशन के आधार खरे उतरें और सशस्त्र सेनाओं के कानूनी मामलों में कमी आए। अभी उच्च न्यायालय में करीब आठ हजार मामलों में अधिकतर प्रमोशन से संबंधित हैं। सेना, नौसेना और वायुसेना में करीब 36 हजार अधिकारी हैं और प्रमोशन में पक्षपात, पारदर्शिता के अभाव और मनमानेपन तक के आरोप सामने आते रहे हैं। इसे देखते हुए एंटनी ने रक्षामंत्री बनने के दो महीने के भीतर ही रक्षा अधिकारियों को निर्देश दिया था कि प्रमोशन बोर्ड की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाया जाए और उदारता बरतकर प्रमोशन देने या किसी का प्रमोशन रोकने के हर मामले का पर्याप्त तर्कसंगत आधार बनाया जाए।
नई नीति में यह सुनिश्चित किया गया है कि किसी अधिकारी की योग्यता कुछ भी हो, लेकिन अनुशासन के मामले अस्वीकार्य तथा चरित्र पर कोई दाग अथवा कार्रवाइयों के दौरान खराब प्रदर्शन का रिकॉर्ड रहा, तो उसका प्रमोशन किसी भी कीमत पर स्वीकृत नहीं होगा। अनैतिक आचरण, खुल्लमखुल्ला लापरवाही या रणभूमि में कायरता दिखाने वाले अफसरों की भी तरक्की नहीं हो पाएगी।
नई नीति में ये सख्त मानक ऐसे समय अपनाए गए हैं, जब कैचअप छिड़ककर पदक बटोरने से लेकर सहयोगी महिला अधिकारी के साथ बदसलूकी करने और फौजियों के लिए घटिया राशन खरीदने से लेकर उनके कपड़ों तक में अनियमितता बरतने के मामले सामने आए हैं। कई मामलों में दागदार अफसर भी आला अधिकारियों से अपनी नजदीकियों या प्रमोशन नीति की खामियों का फायदा उठाकर तरक्की लेने में कामयाब होते रहे हैं।
नई नीति में किसी अधिकारी की गोपनीय रिपोर्ट को 95 प्रतिशत तरजीह दी जाएगी और बाकी पांच प्रतिशत फैसला प्रमोशन बोर्ड पर छोड़ा जाएगा। इस पांच प्रतिशत को भी नई नीति में स्पष्ट कर दिया गया है। प्रमोशन के समय यह भी देखा जाएगा कि अधिकारी की तैनाती कितने चुनौतीपूर्ण वातावरण में रही है, उसके रिपोर्ट के आंकलन में कितनी उदारता और सख्ती बरती गई है, रिपोर्ट बढ़ाचढ़ा कर लिखी गई या घटाई गई है, तथा उसने कितने पुरस्कार और सम्मान हासिल किए हैं।
इस नीति में यह प्रयास किया गया है कि मूल्यांकन का तरीका व्यापक एवं वैज्ञानिक हो, मानवीय गलतियों की गुंजाइश कम की जाए ताकि काम का स्वस्थ माहौल रहे। रक्षा मंत्रालय ने तीनों सैन्य बलों के लिए ये मानक तय किए हैं और अब इसके बाद वायुसेना. नौसेना और थल सेना अपनी-अपनी जरूरतों के हिसाब से इन मानकों के आधार पर अपनी कसौटियां तय करेंगी। थल सेना ने अपने मानकों के लिए एक अध्ययन शुरू भी कर दिया है।