31 December, 2007

वापस लिया जा सकता है अस्थायी प्रमोशन

केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) ने व्यवस्था दी है कि किसी कर्मचारी को अस्थायी पद पर दिया गया प्रमोशन बाद में वापस भी लिया जा सकता है। जस्टिस वीके बाली और जस्टिस एलके जोशी की बेंच ने यह व्यवस्था देते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उस आदेश को खारिज करने से इनकार कर दिया, जिसमें एक कर्मचारी को पदावनत कर दिया गया था। बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता का प्रमोशन किसी खास काम के लिए अस्थायी तौर पर किया गया था। इसलिए इसे वापस लेना अवैध नहीं है।

मामला यह था कि निर्मला सिंह को मानव संसाधन विकास मंत्रालय के हिंदी निदेशालय में ‘यूनेस्को दूत’ के संपादन के लिए अस्थायी तौर पर सृजित सीनियर प्रूफ रीडर के पद पर प्रमोशन दिया गया था। यह पद खत्म होने के बाद 1 मई, 2002 को उन्हें वापस जूनियर प्रूफ रीडर बना दिया गया। उन्हें इस पद के अनुरूप कम वेतनमान भी दिया जाने लगा। निर्मला सिंह ने इसे कैट में चुनौती दी थी। बेंच ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता ने आदेश की वैधानिकता पर सवाल कभी नहीं उठाया। उन्होंने ठोस आधार के बिना इसे सिर्फ पलटने की गुजारिश की। पदावनति का आदेश 2002 में जारी किया गया था, जबकि इसके खिलाफ याचिका 2007 में दायर की गई। याचिकाकर्ता के पास इतने लंबे वक्त तक इंतजार करने की कोई वजह नहीं थी। याचिका सिर्फ इसलिए दाखिल की गई क्योंकि इसके बाद मंत्रालय के आदेश को चुनौती नहीं दी जा सकती थी।

25 December, 2007

अस्थायी कर्मियों के आश्रितों को पेंशन नहीं

अस्थायी कर्मचारी के आश्रित परिवार पेंशन पाने के हकदार नहीं हैं। केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण [कैट] ने एक रेल मजदूर की विधवा की याचिका पर यह फैसला सुनाया।

अधिकरण की सदस्य मीरा छिब्बर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कर्मचारी की विधवा को पेंशन देने का सवाल तब पैदा होता जबकि उसके पति को स्थायी कर दिया गया होता। अस्थायी कर्मचारी का दर्जा हासिल होने से परिजन पेंशन के हकदार नहीं हो सकते। यह फैसला कुन्नू राम की विधवा सुबालया देवी की याचिका पर सुनाया गया। उसने अनुरोध किया था कि रेलवे को उसकी पारिवारिक पेंशन जारी करने के निर्देश दिए जाएं।

सुबालया ने आरोप लगाया था कि कुन्नू से कनिष्ठ दो कर्मचारियों को नियमित कर दिया गया जबकि उसे टेस्ट के लिए बुलाया ही नहीं गया। रेलवे ने इस याचिका का यह कहते हुए विरोध किया था कि दिहाड़ी मजदूरों को स्थायी कर्मचारी का दर्जा उनकी वरीयता के क्रम में नहीं दिया जाता। यह दर्जा दिया जाना पदों की उपलब्धता, मजदूर की योग्यता और अर्हता पर निर्भर करता है।

19 December, 2007

चयन में दखल नहीं दे सकती हैं अदालतें

भारत की सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकारी अफसरों की प्रोन्नति की प्रक्रिया में अदालतों और न्यायाधिकरणों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

न्यायमूर्ति एके माथुर और न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू की पीठ ने कहा कि आकलन करने के लिए चयन समिति पर भरोसा किया जाना चाहिए और यह अपील करने का विषय नहीं है। न्यायालय ने कहा कि इस तरह का कोई आम नियम या सख्त दिशानिर्देश नहीं हो सकता है जिनका पालन चयन समितियां सालाना गोपनीय रिपोर्ट में अधिकारियों को वरीयता देते वक्त करें।

पीठ ने कहा कि एसीआर का निरीक्षण करने पर समिति इस नतीजे पर पहुंच सकती है कि कोई खास उम्मीदवार अच्छा है या बहुत अच्छा। ऐसे मामलों में अदालतों या न्यायाधिकरण को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

पीठ ने यह व्यवस्था कर्नाटक के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से दाखिल विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दी। इन अधिकारियों ने उन्हें आईएएस संवर्ग देने के लिए संघ लोक सेवा आयोग द्वारा अपनाई गई चयन प्रक्रिया को चुनौती दी थी। केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने इससे पहले चयन प्रक्रिया को रद्द कर दिया था। न्यायाधिकरण की राय थी कि समिति ने कुछ अभ्यर्थियों को फायदा पहुंचाने के लिए मनमाने तरीके से काम किया।

बहरहाल, यूपीएससी की याचिका पर कर्नाटक उच्च न्यायालय ने चयन प्रक्रिया को जायज ठहरा दिया था जिसके बाद अधिकारियों ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष याचिकाएं दाखिल की थीं।

18 December, 2007

सेवानिवृत्ति आयु 60 से बढ़ाकर 62 साल

केंद्रीय कर्मचारियों की जेब भारी करने के साथ-साथ छठा वेतन आयोग उनकी सेवानिवृत्ति आयु 60 से बढ़ाकर 62 साल करने की सिफारिश पर विचार कर रहा है। श्रम और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ सेवानिवृत्ति आयु में दो साल की बढ़ोतरी करने की राय आयोग के आला अधिकारी को देने की तैयारी में हैं। इस सलाह के पीछे उनकी दलील है कि इस तरह सरकार पेंशन बिल पर पड़ने वाला बोझ कम से कम दो साल के लिए टाल सकती है।

संभावित वेतन वृद्धि की वजह से सरकार पर पड़ने वाले बोझ से निपटने के तरीके तलाशने के तहत ही आयोग सेवानिवृत्ति से जुड़े पहलू पर विचार कर रहा है। इस सिलसिले में हिसाब-किताब लगा रहे विशेषज्ञ मान रहे हैं कि सेवानिवृत्ति आयु में दो साल की बढ़ोतरी से सरकार को काफी राहत मिल सकती है। ऐसा नहीं करने से सरकार को 'दोहरे आर्थिक बोझ' से दो-चार होना पड़ेगा।

एक ओर आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद वेतन वृद्धि से पड़ने वाला वित्तीय भार तो होगा ही, सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन व उससे जुड़े तमाम आर्थिक दावों की लंबी फेहरिस्त भी होगी। वित्त मंत्रालय के आला अधिकारियों के साथ चंद रोज पहले हुई चर्चा में इस मामले का बड़ी गंभीरता से आकलन किया गया। वित्त मंत्रालय मान रहा है कि भविष्य में पेंशन बिल के भुगतान पर होने वाला खर्च वेतन के चलते पड़ने वाले आर्थिक बोझ से किसी तरह कम नहीं होगा। इसके लिए विशेषज्ञ अपने आंकड़े भी वेतन आयोग तक पहुंचा रहे हैं। उनका कहना है कि 2007-08 में केंद्रीय कर्मचारियों का पेंशन बिल वेतन बिल से ऊपर निकल सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार 2006-07 में पेंशन और उससे जुड़ी अन्य वित्तीय जिम्मेदारियों को पूरा करने पर सरकार को 39,074 करोड़ रुपये का भार पड़ा था। वेतन संबंधी भुगतान से पड़ने वाला बोझ 40,047 करोड़ रुपये का था। अगर इन आंकड़ों को आधार बनाया जाए तो मौजूदा वित्तीय वर्ष में पेंशन पर होने वाला खर्च निश्चित रूप से केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन के खर्च से आगे निकल जाएगा।

वेतन आयोग को बताया गया है कि रेल कर्मियों के मामले में यह तो हो ही रहा है। अब अगर इन विशेषज्ञों की दलीलें आयोग के गले उतरीं तो 60 साल पूरा करके सेवानिवृत्ति की दहलीज पर खड़े कर्मचारियों को दो साल और सेवाएं देनी होंगी।

17 December, 2007

हफ्ते में ज्यादा काम करते हैं 60 करोड़ लोग !

दुनिया भर में हर पांच में से एक श्रमिक या 60 करोड़ लोग अभी भी सप्ताह में 48 घंटे से अधिक काम करते हैं जो मात्र उनके गुजारे भर के लिए होता है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा किए गए एक ताजा अध्ययन से यह बात सामने आई है कि दुनिया भर के श्रमिकों में से 22 प्रतिशत यानी 61.42 करोड़ श्रमिक अत्यधिक लंबे घंटों तक काम करते हैं। पचास से अधिक देशों में किए गए इस अध्ययन में दुनिया भर में श्रम अवधि से संबंधित मुद्दों-जैसे राष्ट्रीय कानून तथा नीतियां, श्रम के वास्तविक घंटों की प्रवृत्तियां, विभिन्न प्रकार के श्रमिकों तथा आर्थिक क्षेत्रों के विशेष अनुभव और श्रम अवधि पर भावी नीतियों के लिए इन सब के निहितार्थ का पुनरीक्षण किया गया है।

यह रिपोर्ट श्रम अवधि पर राष्ट्रीय कानूनों एवं नीतियों तथा वास्तविक श्रम घंटों पर पहला वैश्विक तुलनात्मक विश्लेषण है जो विकासशील तथा संक्रमणकालीन देशों पर केंद्रित है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की कार्य स्थितियां तथा रोजगार कार्यक्रम के वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी और इस अध्ययन के सह लेखक जान सी मेसेंजर के अनुसार एक अच्छी बात यह है कि विकासशील और संक्रमणकालीन देशों में साधारण काम के घंटों को नियमित करने में प्रगति हुई है, लेकिन कुल मिलाकर अध्ययन निष्कर्ष विशेषकर अत्यंत लंबे श्रम के घंटों के बारे में निश्चित रूप से चिंताजनक है।

14 December, 2007

रेलवे कर्मचारियों को चिकित्सा भत्ता

रेलवे अस्पताल के तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को अब चिकित्सा भत्ता दिया जाएगा।

कैबिनेट की एक बैठक के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने १४ दिसम्बर को बताया कि रेलवे के 30 बिस्तरों या उससे अधिक वाले सामान्य अस्पतालों और 10 या उससे अधिक बिस्तरों वाले रेलवे के विशेष अस्पतालों के कर्मचारियों को यह सुविधा दी जाएगी।

तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों के लिए यह भत्ता 700 रुपए प्रतिमाह और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के लिए यह भत्ता 695 रुपए प्रति माह होगी।

09 December, 2007

बीमा कर्मचारियों ने की 40 फीसदी वेतन वृद्धि की मांग

बीमा कर्मचारियों की मांग है कि उनके वेतन में 40 फीसदी की बढोतरी की जाए। शनिवार को कानपुर में शुरू हुई अखिल भारतीय बीमा कर्मचारी संघ(एआईआईईए) की 21वीं महासभा में बीमा कर्मचारियों ने मांग की कि उनके वेतन में वृद्धि के अलावा सार्वजनिक क्षेत्र की चार गैर जीवन बीमा कंपनियों का विलय किया जाए। एआईआईईए के सचिव जे। गुरूमूर्ति ने बताया, ‘निजी क्षेत्र की कंपनियां अच्छा वेतन दे रही हैं। इस कारण प्रतिभाशाली लोग नौकरी छोड़कर उनकी आ॓र जा रहे हैं। इसे रोकना होगा।’ उन्होंने बताया कि वित्त वर्ष 2006-07 के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र की चारों कंपनियों ने 32।20 अरब रूपए का मुनाफा कमाया है, जो वर्ष 2005-06 में 15।83 अरब रूपए था। गुरूमूर्ति ने कहा, ‘कर्मचारियों पर काम का अत्यधिक दबाव है। कर्मचारियों की कमी के बावजूद कंपनियों ने इतना अच्छा प्रदर्शन किया है।’
उन्होंने बताया कि संसद सदस्य प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर चारों सरकारी गैर जीवन बीमा कंपनियों के विलय की मांग करेंगे। इनमें नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, आ॓रिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड शामिल हैं।


08 December, 2007

नाकाबिल बॉस को अयोग्य एंप्लॉई ही अच्छे लगते हैं

न्यूयार्क में की गयी एक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि जिस बॉस में योग्यता की कमी होती है, वह अयोग्य एंप्लॉई को तरजीह देता है। रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि अपने जॉब को उचित ठहराने के लिए ऐसे बॉस कम योग्य एंप्लॉईज के बीच काम करना पसंद करते हैं।

इंटरनैशनल रिसर्चरों की एक टीम स्टडी के बाद इस नतीजे पर पहुंची। रिसर्चरों ने पाया कि जिन लोगों को लगता है कि मैं अपने जॉब के अनुसार योग्यता नहीं रखता, वे अयोग्य या कम सक्षम एंप्लॉईज से घिरे रहना चाहते हैं। साइंस डेली ने रिसर्चर रोजा के हवाले से अपनी रिपोर्ट में ऐसे बॉस की मानसिकता के बारे में बताया है। रिपोर्ट के मुताबिक- कम योग्य एंप्लॉईज के बीच काम करने की इस प्रवृति के पीछे वजह यह होती है कि ऐसे लोग किसी मातहत को अपना प्रतियोगी बनने नहीं देना चाहते। टीम ने कुल मिलाकर यही पाया कि योग्य इग्जेक्युटिव ही सक्षम सहयोगियों के साथ काम करने को तरजीह देते हैं।

अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ ग्रेनेडा और बेल्जियम की यूनिवर्सिटी ऑफ लोवैनिया के रिसर्चरों ने इस नतीजे पर पहुंचने से पहले 73 वॉलंटियर स्टूडेंट्स के एक ग्रुप का विश्लेषण किया। इनमें 18 से 25 साल से बीच की उम्र की महिलाएं बहुमत में (80 फीसदी से ज्यादा) थीं। स्टडी में शामिल लोगों को कुछ अधिकार दिए गए और उनका इस्तेमाल करने को कहा गया। उनसे कहा गया कि आप स्टूडेंट्स की कॉन्फ्रेंस में नुमाइंदगी करेंगे और वहां सीधे अपने मातहत के रूप में काम करने के लिए पार्टनर चुन सकते हैं।

इन स्टूडेंट्स को दो समूहों में बांट दिया गया था। आधे स्टूडेंट्स को बताया कि अपने काम के लिए उन्हें उचित अधिकार दिए गए हैं, जबकि बाकी आधे स्टूडेंट्स से कहा गया कि आपको अपना काम बिना किसी अधिकार के अंजाम देना है। इन सबके पास अपने मातहत के रूप में काफी सक्षम से लेकर कम योग्य कैंडिडेट को चुनने का विकल्प मौजूद था। जब मातहत चुनने की बारी आई, तो अधिकार प्राप्त स्टूडेंट्स और बिना अधिकार वाले स्टूडेंट्स के बीच साफ फर्क दिखा। बिना अधिकार वाले बॉसेज ने अधिकार प्राप्त बॉसेज की तुलना में बड़ी संख्या में अयोग्य मातहत चुने।

05 December, 2007

जितना ज्यादा मुनाफा, कर्मचारियों को उतना बोनस

कंपनियों को अपने मुनाफे के आधार पर कर्मचारियों को बोनस देना पड़ सकता है। श्रमिक संगठनों के इस प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है कि कंपनी का जितना मुनाफा बढ़े, उसी अनुपात में कर्मचारियों को बोनस भी बढ़कर मिलना चाहिए। इस बारे में जल्द ही वित्त मंत्रालय व कार्मिक मंत्रालय से बातचीत की जाएगी।

श्रम मंत्री ऑस्कर फर्नांडिस ने कहा कि प्रस्ताव में यह बात साफ तौर कर कही गई है कि अगर किसी वजह से कंपनी को घाटा हो गया, तो उसे बोनस बढ़ाने की जरूरत नहीं होगी। मगर ऐसी हालत में भी कर्मचारियों को बोनस जरूर देना होगा। उन्होंने कहा कि बड़ी कंपनियों में अधिकारियों और कर्मचारियों की परफॉर्मेंस देखते हुए बोनस दिया जाता है। मगर ऐसी कंपनियों की संख्या काफी कम है।

कंपनी मामलों के एक्सपर्ट व एडवोकेट प्रदीप मित्तल का कहना है कि बोनस एक्ट के तहत कंपनियों को अपने कर्मचारियों व अधिकारियों को सालाना बेसिक सैलरी का कम से कम 8.33 फीसदी देना होता है। एक्सग्रेशिया यानी अनुग्रह राशि के रूप में कंपनियां अतिरिक्त रूप से इसमें जितना मर्जी जोड़ सकती हैं। ज्यादातर कंपनियां अपने अधिकारियों को मोटी राशि बोनस के रूप दे रही हैं, मगर कर्मचारियों को नियत राशि बोनस के रूप में दी जा रही है।

सीपीआई के सेक्रेटरी डी. राजा इस प्रस्ताव से इत्तिफाक रखते हैं। उनका कहना है कि अगर केंद्र सरकार इस तरह का कोई प्रस्ताव लाती है, तो उसका स्वागत किया जाएगा। जो कर्मचारी कंपनियों की तरक्की में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं, उनको मुनाफे में कुछ तो मिलना चाहिए।

04 December, 2007

सरकारी कर्मचारी की अविवाहित पुत्री को जीवनपर्यन्त पेंशन

केन्द्र सरकार ने किसी कर्मचारी की मौत पर उसकी अविवाहित पुत्रियों को मिलने वाली पारिवारिक पेंशन के नियमों में ढील दी है। अब उम्र सीमा 25 साल से बढाकर जीवनपर्यन्त कर दी गयी है।

केन्द्र सरकार के कानून में अभी तक केवल 25 साल की उम्र तक अविवाहित बेटियों के लिये यह प्रावधान था।
एक सरकारी प्रवक्ता ने आज यहां बताया कि अगर वह 25 साल से पहले विवाह कर लेती है तो उसकी पारिवारिक पेंशन बंद हो जायेगी।

लेकिन संचार विभाग के दिवंगत कर्मचारी की 65 वर्षीय अविवाहित कमलजीत कौर के मामले ने सरकार को कानून की समीक्षा करने का मौका दिया। अब कानून यह होगा कि अगर सरकारी कर्मचारी की पुत्री विवाह नहीं करते तो वह जीवनपर्यन्त पेंशन की हकदार होगी।
भाषा

03 December, 2007

बोनस बढ़ाने वाले बिल पर संसद की मुहर

बोनस की रकम बढ़ाने के प्रावधान वाले बोनस संदाय संशोधन विधेयक 2007 को सोमवार को राज्यसभा की स्वीकृति मिलने के साथ ही इस पर संसद की मुहर लग गई। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है।

अक्टूबर में जारी एक अध्यादेश के स्थान पर लाए गए इस विधेयक में बोनस के लिए वेतन पात्रता की सीमा साढ़े तीन हजार रुपये से 10 हजार रुपये और बोनस की गणना का आधार 2500 रुपये से 3500 रुपये प्रतिमाह करने का प्रावधान है।

राज्यसभा में हुई बहस के दौरान सदस्यों ने लाभ और उत्पादकता आधारित बोनस दिलाने, बोनस में मंहगाई के आधार पर वार्षिक वृद्धि करने और बोनस कानून का दायरा बढ़ाने के लिए एक व्यापक कानून लाने की मांग की। चर्चा के जवाब में श्रम राज्य मंत्री आस्कर फर्नाडीस ने कहा कि वह व्यापक कानून बनाने के सुझाव पर श्रमिक संघों और मालिकों से वार्ता करेंगे। उन्होंने अस्थायी प्रकृति वाले निर्माण श्रमिकों के बोनस की गणना मासिक आधार के बजाय साप्ताहिक आधार पर लागू करने की संभावना पर भी विचार करने का आश्वासन दिया।

फर्नाडीस ने कहा कि बोनस भुगतान के संशोधित प्रावधान पिछले वर्ष पहली अप्रैल से लागू माने जाएंगे। इस तरह बोनस कानून के तहत आने वाले संगठनों के मजदूरों और कर्मचारियों को 2006-07 के वेतन का बोनस नए प्रावधानों के आधार पर देय होगा।

28 November, 2007

नई पेंशन का पैसा बाजार में लगेगा

नई पेंशन योजना में अंशदान कर रहे सरकारी कर्मचारियों के पेंशन कोष को अधिक फल देने वाला बनाने के लिए उसे शेयर बाजार में निवेश करने का इंतजार अगले वर्ष जून में समाप्त हो जाएगा। शुरू में इससे तीन लाख से अधिक केंद्रीय कर्मचारियों को लाभ होगा।

पहली जनवरी 2004 से लागू इस योजना का करीब 2000 रुपए का कोष इस समय केंद्र सरकार के खाते में पड़ा है जिस पर कर्मचारियों को आठ प्रतिशत की वार्षिक दर से ब्याज मिलता है जो बाजार में निवेश पर मिलने वाले संभावित प्रतिफल से कम बताई जा रही है।

नई पेंशन योजना के पैसे को बाजार में निवेश करने की व्यवस्था बनाने और कर्मचारियों के रिकॉर्ड रखने के लिए पीएफआरडीए ने राष्ट्रीय प्रतिभूति डिपाजिटरी लि. (एनएसडीएल) को केंद्रीय अभिलेख संरक्षक एजेंसी (सीआरए) के साथ कल एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

पीएफआरडीए मे अध्यक्ष डी स्वरूप और एनएसडीएल के प्रमुख सीबी भावे ने उम्मीद जताई की सीआरए पहली जून से केंद्र सरकार के कर्मचारियों के कोष के संबंध में अपना काम शुरू कर सकती है। उन्होंने कहा कि उसके साथ ही उनके पेंशन कोष के निवेश के पूरे प्रबंध कर लिए जाने की उम्मीद है।

बोनस पात्रता विधेयक पारित

लोकसभा ने बोनस के लिए पात्रता तथा बोनस राशि की सीमा बढ़ाने के प्रावधान वाले विधेयक २८ नवम्बर को ध्वनिमत से पारित कर दिया।

इससे पहले बोनस अधिनियम 1965 में संशोधन करने वाले इस विधेयक पर सदन में हुई चर्चा का जवाब देते हुए श्रम एवं रोजगार मंत्री ऑस्कर फर्नांडीस ने कहा कि सरकार भी भवन निर्माण में लगे कामगारों के साथ-साथ खेतिहर मजदूरों एवं असंगठित क्षेत्र के अन्य कर्मियों को इसके दायरे में लाने को प्रतिबद्ध है।

मंत्री का कहना था कि उनके अस्थायी चरित्र के नियोजन के कारण उनकी पहचान सुनिश्चित करने में व्यावहारिक बाधाएँ हैं और सरकार नहीं चाहती कि उनकी पहचान का एक तंत्र बनाए बिना उन्हें बोनस कानून के दायरे में लाने की कागजी खानापूर्ति कर ली जाए।

बोनस की पात्रता के लिए साढ़े सात हजार रुपए या इससे कम मूल मासिक वेतन की दूसरे श्रम आयोग की शर्त को बढ़ाकर दस हजार रुपए कर देने की अपनी पहल को उन्होंने कामगारों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रमाण बताया।

20 November, 2007

भारतीय कर्मचारियों सबसे ज्यादा टैक्स देते हैं

भारतीय कर्मचारी अपनी सैलरी पर एशिया में सबसे ज्यादा टैक्स देते हैं। इंडियन एम्प्लॉईज की ग्रॉस सैलरी का 29.1 परसेंट हिस्सा टैक्स और सोशल सिक्युरिटी कॉन्स्ट्रिब्यूशन के रूप में सरकारी खजाने में चला जाता है। एशिया में सैलरी पर सबसे कम टैक्स सऊदी अरब में लगता है। वहां सिर्फ 5 परसेंट टैक्स लिया जाता है। वह भी इनकम टैक्स नहीं, सोशल सिक्युरिटी के रूप में। दुनिया में बेल्जियम में सबसे ज्यादा 50.5 परसेंट टैक्स काटा जाता है।

इंटरनैशनल एचआर कंसल्टेंसी फर्म मर्सर ने दुनिया के 32 देशों में इंडिविजुअल टैक्स की तुलना करके सोमवार को रिपोर्ट जारी की। इसके लिए पर्सनल टैक्स स्ट्रक्चर, ऐवरेज सैलरी और मैरिटल स्टेटस को प्रमुखता से आंका गया। सर्वे से पता चला कि कुंआरे कर्मचारियों के मुकाबले शादीशुदा कर्मचारी कम टैक्स देते हैं। लेकिन सभी देशों में यह स्थिति नहीं है। भारत, ब्राजील और तुर्की में शादीशुदा कर्मचारियों को उतना ही टैक्स देना पड़ता है, जितना कुंआरे कर्मचारियों को।

नवभारत टाइम्स की खबर के अनुसार दुनिया में कुंआरे कर्मचारियों से सबसे कम टैक्स लेने वालों में सऊदी अरब के बाद रूस (13 % ), हांगकांग (14.2 % ), ताइवान (14.6 % ) और सिंगापुर (16.4 % ) हैं। एशिया की लिस्ट में भारत का नंबर सबसे नीचे है यानी बाकी एशिया देशों के मुकाबले भारत में कर्मचारी ज्यादा टैक्स देते हैं। ग्लोबल लिस्ट में भारत के कुंआरे एम्प्लॉई 14वें नंबर पर, शादीशुदा (बिना बच्चे वाले) 20वें नंबर पर और दो बच्चे वाले शादीशुदा कर्मचारी 22वें नंबर पर हैं। हंगरी (30वां नंबर) में 48.5 % , डेनमार्क (31वां नंबर) में 48.6 % और बेल्जियम (32वां नंबर) में 50.5 % टैक्स और सामाजिक सुरक्षा योगदान ग्रॉस इनकम से वसूला जाता है।

16 November, 2007

रिटायर होने की उम्र बढ़ाने की तैयारी में सरकार!

लाखों सरकारी कर्मचारियों को एक बड़ा तोहफा मिल सकता है। यूपीए सरकार उनकी रिटायरमेंट की उम्र 60 से बढ़ाकर 62 साल करने की तैयारी में है। इसे गठबंधन के लेफ्ट सहयोगियों को खुश करने की यूपीए सरकार की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

हाल के दिनों में विभिन्न मुद्दों पर यूपीए-लेफ्ट रिश्तों में खटास आती रही है। इनमें भारत-अमेरिका परमाणु करार का मसला भी शामिल रहा है। रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने के तरीके को लागू करने पर अभी कार्मिक और वित्त मंत्रालय में काम चल रहा है। इसकी औपचारिक घोषणा बजट में किए जाने की संभावना है। नवभारत टाइम्स में छ्पी खबर के अनुसार अगर इसे लागू किया गया, तो इसका फायदा सभी सरकारी कर्मचारियों को मिलेगा। रेलवे और पोस्टल जैसे डिपार्टमेंट के कर्मचारियों के अलावा पब्लिक सेक्टर के कर्मचारियों को भी इसका फायदा मिल सकता है।

11 November, 2007

दफ्तर में हंसी-मजाक से सुधरती है परफॉरमेंस

अगर आपके बॉस इस खयाल के हैं कि दफ्तर सिर्फ काम की जगह है, हंसी-मजाक की नहीं, तो उन्हें इस ताजा स्टडी रिपोर्ट से वाकिफ कराएं।

अमेरिकी रिसर्चरों के मुताबिक दफ्तर और काम की अन्य जगहों पर हल्के- फुल्के हंसी-मजाक से न सिर्फ कर्मचारियों के बीच तालमेल और अच्छे रिश्ते विकसित होते हैं, बल्कि उनकी परफॉरमेंस पर भी इसका पॉजिटिव असर होता है।

कोलंबिया की मिजौरी यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने साइकॉलजी, सोशियॉलजी, एंथ्रपॉलजी, फिलॉसफी और कम्यूनिकेशन्स के क्षेत्र में की गईं सैकड़ों स्टडीज के आधार पर इंसानी इमोशन, ह्यूमर, मूड से जुड़े सिद्धांतों का विश्लेषण किया। 'द केस फॉर डिवेलपिंग न्यू रिसर्च ऑन ह्यूमर एंड कल्चर इन ऑर्गनाइजेशन्स' नामक स्टडी के नतीजों में कहा गया कि ह्यूमर को परखने, हंसने और दूसरों को हंसाने की काबिलियत का शरीर पर मनोवैज्ञानिक असर होता है। यह लोगों को एक-दूसरे से जुड़ने में मदद करता है।

स्टडी की अगुआई करने वाले मनोवैज्ञानिक क्रिस रॉबर्ट के मुताबिक रोजमर्रा की जिंदगी में अपने जोक से दूसरों को हंसाना असल में एक गंभीर बात है। दफ्तर में हल्के-फुल्के मजाक से काम करने वालों की क्रिएटिविटी बढ़ती है। कर्मचारियों के बीच टीम की भावना विकसित होती है और संगठन का कुल मिलाकर परफॉरमेंस बेहतर होता है। क्रिस के मुताबिक कर्मचारियों पर सबसे ज्यादा पॉजिटिव असर उन लतीफों का होता है, जो दफ्तर के कामकाज या कल्चर पर आधारित होते हैं।

स्टडी के दौरान रिसर्चरों ने यह भी पाया कि विभिन्न संस्कृतियों के लोगों के बीच हंसना-हंसाना ज्यादा मुश्किल होता है। ऐसा मल्टीनैशनल कंपनियों में अक्सर देखने में आता है। यह पता करना कठिन हो जाता है कि कौन सी बात सबके लिए फनी होगी। यानी जरूरी नहीं कि जिस बात पर कोई अमेरिकी ठहाके लगाकर हंसता हो, उस पर कोई भारतीय या चीनी भी हंसे। ऐसे में कुछ लोग जोक या हंसी मजाक से परहेज करने की सलाह देते हैं। लेकिन रिसर्चरों ने इस सुझाव को खारिज करते हुए कहा कि मल्टी कल्चरल माहौल में भी हंसी-मजाक की न सिर्फ गुंजाइश होती है, बल्कि बहुत पॉजिटिव असर होता है।

रिसर्चरों के मुताबिक ह्यूमर की सबसे स्वीकार्य थ्योरी यह है कि लोग किसी चीज को तब फनी पाते हैं, जब आप दो चीजों को ऐसे जोड़ें कि जिसकी किसी ने उम्मीद न की हो। यानी हंसने-हंसाने में कॉमन एक्सपेक्टेशन की काफी अहमियत होती है। मल्टी कल्चरल माहौल में काम करने वाले लोग कई मायनों में कॉमन उद्देश्य और साझा उम्मीदों से जुड़े जाते हैं। इन चीजों पर आधारित लतीफे बेशक उन सभी को गुदगुदाते हैं।

पूंजी बाजार में निवेश हो सकता है ईपीएफ का पैसा

ट्रेड यूनियनों द्वारा कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) पर उच्चतर ब्याज की जोरदार मांग किए जाने के कारण ईपीएफ बोर्ड इस महीने के अंत में हो रही बैठक में 2007-08 के लिए ब्याज दर पर निर्णय किए जाने से पहले पूंजी बाजार में निवेश के विकल्पों पर विचार करेगा।

सूत्रों ने बताया कि ईपीएफ के केंद्रीय न्यासी बोर्ड ने 2006-07 के दौरान चार करोड़ ग्राहकों को 8.5 फीसदी ब्याज दर देने का फैसला किया था और चालू वित्त वर्ष के दौरान दी जाने वाली ब्याज दर पर चर्चा अगली बैठक में की जाएगी।

ट्रेड यूनियनें ईपीएफ पर बेहतर ब्याज दर की मांग ऐसे समय पर कर रही हैं जब बैंकों के फिक्स्ड डिपाजिट पर बेहतर दर मिल रही है। व्यावसायिक बैंक फिक्स्ड डिपाजिट पर 9.5 फीसदी की ब्याज देते हैं।

शेयर बाजार में उछाल को देखते हुए ईपीएफ बोर्ड कुल राशि का पांच फीसदी हिस्सा पूंजी बाजार में निवेश करने संबंधी प्रस्ताव पर विचार कर सकता है। यह प्रस्ताव ईपीएफ के न्यासी बोर्ड की जुलाई में हुई बैठक के दौरान आया था, लेकिन इसे सदस्यों की मंजूरी नहीं मिल पाई, क्योंकि उनमें ज्यादातर वामपंथी ट्रेड यूनियनों से संबद्ध थे जो पूंजी बाजार में निवेश का विरोध कर रहे थे। उनकी राय में पूंजी बाजार कभी भी गिर सकता है। लेकिन अब स्थिति अलग है और प्रस्ताव पर दुबारा विचार किया जा सकता है। बाजार का सकारात्मक रुख वामपंथी ट्रेड यूनियनों के पूंजी बाजार में निवेश न करने की दलील को झुठला सकता है।

-जागरण की खबर

सरकार देगी सोलर वाटर हीटर सिस्टम

जागरण में छपी एक खबर के मुताबिक, हरियाणा सरकार की ओर से, सामाजिक गतिविधियों में कार्यरत सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों को, निशुल्क सोलर वाटर हीटिंग सिस्टम उपलब्ध कराया जाएगा।

इस प्रकार के संस्थानों का तीन वर्ष से पंजीकरण होना अनिवार्य है। तीन वर्षो से कार्यरत धमार्थ संस्थानों को भी यह सिस्टम मुहैया करवाए जाएंगे। इन संस्थानों को पहले आओ, पहले पाओ की तर्ज पर यह सिस्टम उपलब्ध कराया जाएगा। सिस्टम की कुल कीमत का 10 प्रतिशत राशि डिमांड ड्राफ्ट के रूप में हरियाणा रिनिवेबल एनर्जी डेवेलपमेंट एजेंसी को मरम्मत व रख-रखाव के लिए देना पड़ेगा। 'हरेडा' की ओर से महिला हास्टल, अनाथालयों, गूंगे-बहरों के केंद्रों, वृद्धाश्रमों, बाल गृह, नारी निकेतन, अनुसूचित जातियों व कमजोर वर्गों के खेल छात्रावासों में यह सिस्टम उपलब्ध कराया जाएगा। इसमें भी अनुसूचित जाति की महिलाओं, विकलांगों, निराश्रयों व अभावग्रस्त बच्चों एवं समाज के अन्य कमजोर वर्ग के कल्याण में लगी संस्थाओं को इस योजना के तहत प्राथमिकता दी जाएगी।

इस योजना के तहत घरेलू उपयोग के लिए भी 'हरेडा' की ओर से अनुदान दिया जाएगा। योजना के तहत 100 लीटर क्षमता के सोलर वाटर हीटिंग सिस्टम पर 5000 रुपये और 200 लीटर क्षमता के सोलर वाटर हीटिंग सिस्टम पर 10 हजार रुपये का अनुदान दिया जाएगा।

सभी प्रदेशवासियों एवं स्वयं के या सरकारी आवासों में रह रहे सभी सरकारी कर्मचारी इस योजना का लाभ ले सकते है

08 November, 2007

मोबाइल के बिना भारतीय महिलाओं को विदेशों में काम नहीं

आईएएनएस की एक खबर के मुताबिक, जो भारतीय महिलाएं विदेशों में जाकर काम करना चाहती हैं उनके लिए अपने पास मोबाइल फोन रखना जरूरी होगाकेंद्र सरकार यह भी सुनिश्चित करेगी कि ऐसी महिलाएं जो विदेशों में रोजगार के लिए जा रही हैं उन्हें कम से कम 400 डालर (करीब 16,000 रुपए) प्रति माह वेतन दिया जाएसाथ ही इन महिलाओं के विषय में भारतीय दूतावास में पंजीयन आवश्यक होगा, ताकि इनसे लगातार संपर्क में रहा जाए
सरकार गैरकानूनी तरीके से एजेंट के जरिए महिलाओं को रोजगार का लालच देकर विदेश ले जाने से रोकने के लिए इन उपायों पर अमल करने की योजना बना रही हैयह जानकारी प्रवासी भारतीय कार्य मंत्री वायलार रवि ने एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान दीवह आगामी 7-9 जनवरी को नई दिल्ली में आयोजित किए जा रहे प्रवासी भारतीय दिवस (पीबीडी) के विषय में जानकारी दे रहे थे
वायलार ने बताया कि इस बार के पीबीडी का मुख्य मुद्दा ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक दृष्टिकोण से आत्मनिर्भर बनाना होगासाथ ही स्वास्थ्य और शिक्षा पर भी विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगाउन्होंने कहा कि ऐसी योजनाएं तैयार की जा रही हैं कि प्रवासी भारतीय इन क्षेत्रों के विकास के लिए सीधे तौर पर जुड़ सकें
इस मौके पर भारतीय औद्योगिक परिसंघ (सीआईआई) के अध्यक्ष सुनील भारती मित्तल ने कहा कि जल्द ही 'ग्लोबल मोबाइल मनी ट्रांसफर' पर काम पूरा किया जाएगाइस सुविधा के तहत विदेशों से मोबाइल का इस्तेमाल कर भारत में पैसे भेजे जा सकेंगेयह सुविधा प्रवासी भारतीयों के लिए भी विशेष रूप से सहायक होगी जो देश में अपना पैसा भेजना चाहते हैं

07 November, 2007

समान पद पर कार्यरत व्यक्तियों पर लागू होता है समान वेतन का सिद्धांत

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि समान काम के लिए समान वेतन का सिद्धांत केवल उन्हीं व्यक्तियों पर लागू होता है जो हर दृष्टि से समान पद पर कार्यरत हों। कोर्ट ने कहा कि हर पहलू पर गौर करने के बाद वेतन आयोग द्वारा तय किए गए वेतनमान को चुनौती नहीं दी जा सकती।

न्यायमूर्ति एसबी सिन्हा और हरजीत सिंह बेदी की पीठ ने कहा कि वेतन पुनरीक्षण आयोग द्वारा तय किए गए वेतनमान के बारे में वेतन विसंगति की शिकायत कर्मचारी नहीं कर सकते। राष्ट्रीय आधुनिक कला दीर्घा की कर्मचारी से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने यह व्यवस्था दी।

केंद्र की ओर से दाखिल अपील पर न्यायालय ने कहा कि अगर किसी विशेषज्ञ संस्था ने शिक्षा और अन्य संबंधित तथ्यों के मद्देनजर उच्चतर वेतनमान तय किया है तो इससे किसी को छूट नहीं दी जा सकती।

केंद्र सरकार ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के फैसले के खिलाफ अपील की थी। कैट ने दीर्घा में सहायक लायब्रेरियन और सूचना सहायक के पद पर कार्यरत महजबीन अख्तर के वेतनमान पर पुनर्विचार के लिए केंद्र से कहा था। महजबीन ने केंद्रीय हिंदी निदेशालय और केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान में कार्यरत अनुसंधान सहायक के बराबर वेतन की मांग की थी। उसने कहा था कि पांचवें वेतन आयोग ने उसकी श्रेणी के कर्मचारियों को अन्य संस्थानों के अनुसंधान सहायकों से निचली वेतन श्रेणी में रखा है।

- जागरण पर एक समाचार

05 November, 2007

वेतन आयोग: कर्मियों को छका सकता है केंद्र

छठे वेतन आयोग के पिटारे की ओर बेसब्री से टकटकी लगाए चालीस लाख से भी ज्यादा केंद्रीय कर्मचारियों को सरकार लंबा इंतजार करा सकती है। आयोग की रिपोर्ट निर्धारित समय से पहले ही मांग चुकी संप्रग सरकार वेतन संबंधी अनुशंसा को लागू करने में जल्दबाजी दिखाने के पक्ष में नहीं है। यानी मध्यावधि चुनाव की संभावना के मद्देनजर वेतन आयोग की सिफारिशों के जल्द अमल में आने की उम्मीदें बांधे सरकारी कर्मचारियों को निराश होना पड़ सकता है

मध्यावधि चुनाव के मद्देनजर एक-एक करके लुभावने फैसलों को सामने लाकर आम आदमी का दिल जीतने में लगी केंद्र सरकार ने वेतन आयोग को लेकर कर्मचारियों की उम्मीदें बढ़ा दी थीं। लेकिन अब सरकार का मूड बदल रहा है।

सूत्रों की माने तो सरकारी रणनीतिकार चाहते हैं कि अगर मध्यावधि चुनाव की संभावना बनती है तो वेतन आयोग की सिफारिशों को चुनाव बाद ही लागू करना चाहिए, ताकि इन सिफारिशों को अमली जामा पहनाने का आश्वासन कांग्रेस के घोषणा पत्र का अहम हिस्सा बन सके। अत: वेतन वृद्धि के लिए सरकारी कर्मियों का इंतजार लंबा हो सकता है।

सरकार के राजनीतिक प्रबंधकों का मानना है कि ऐसी रणनीति पर अमल करने से कर्मचारियों के रूप में भारी वोट बैंक तक पहुंचना आसान हो जाएगा। इस लिहाज से सरकार को वेतन आयोग से सिफारिशें जल्द से जल्द मंगा लेने की सलाह दी गई है।

बताया जा रहा है कि हाल ही में वित्त मंत्री और वेतन आयोग के अधिकारियों के बीच हुई मंत्रणा के दौरान इस रणनीति पर गंभीरता से विचार हुआ है। सूत्रों के अनुसार सरकार ने वेतन आयोग को जल्द ही अपना काम खत्म करने को कह दिया गया है। आयोग के अधिकारियों ने भी सरकार को जल्द ही सिफारिशें सौंप देने का आश्वासन दिया है।

एक अधिकारी ने बताया 'आयोग अपनी रिपोर्ट जल्द ही तैयार कर लेगा। सरकार से इसके लिए निर्धारित समय से ज्यादा मांगा भी नहीं गया है।' गौरतलब है कि गठित होने के बाद छठे वेतन आयोग को अपनी रिपोर्ट पूरी कर लेने के लिए 18 महीने का समय दिया गया था। इस हिसाब से आयोग को अपनी सिफारिशें अगले वर्ष अप्रैल तक दे देनी होंगी। संकेत साफ हैं कि मध्यावधि चुनाव की संभावना भांप रही सरकार केंद्रीय कर्मियों के वेतन संबंधी सिफारिशों को लागू करने को लेकर समय का हिसाब-किताब लगाने में लग गई है। वैसे, कर्मियों को रिझाने में दिन रात एक कर रही सरकार की कोशिश है कि वेतन आयोग उन पर मेहरबान ही रहे। इसके लिए यह भी कोशिश की जा रही है कि वेतन अयोग के गुलदस्ते में फूल ही हों, न कि कांटे। इस लिहाज से भी हाल की वित्त मंत्रालय में हुई बैठक को काफी अहम माना जा रहा है। इसमें आयोग को उन सुझावों पर फिर से विचार करने को कहा गया जो कर्मचारियों के गले बिल्कुल भी नहीं उतरेंगी। इसमें प्रदर्शन आधारित वेतन से संबंधित सुझाव तो पहले ही विवादास्पद होने लगा है। माकपा के श्रम संगठन सीटू ने इसका जमकर विरोध किया है। सीटू नेताओं ने श्रम मंत्री को अपना विरोध पत्र भेज भी दिया था। सरकार नहीं चाहती कि आयोग की किसी भी सिफारिश को वामदलों के दबाव में वापस लेने की नौबत आए। दरअसल कर्मचारियों की जमात में कामरेडों को अपनी पीठ थपथपाने का मौका सरकार बिल्कुल भी नहीं देना चाहती। ऐसे में आयोग को भी फूंक-फूंक कर कदम रखने को कहा गया है।

-जागरण की एक खबर

छुट्टी पर अधिकार के रूप में विचार नहीं

केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) ने कहा है कि छुट्टी को अधिकार के रूप में विचार नहीं किया जा सकता है। कैट ने कहा कि कर्मचारी का काम पर अनुपस्थित रहना डयूटी पर नहीं बिताया गया समय माना जाना चाहिए। प्रेमलता घई की याचिका पर सुनवाई करते हुए कैट ने कहा कि यह तय नियम है कि संबंधित अधिकारियाें की ओर से छुट्टी की मंजूरी मिले बिना छुट्टी को अधिकार के रूप में विचार नहीं किया जा सकता। इसीलिए आठ फरवरी 1990 से 16 अक्टूबर 1994 की अवधि को बिना मंजूरी के डयूटी से अनुपस्थित माना जाए। प्रेमलता ने छुट्टी बढ़ाए जाने का आवेदन दिया था और बीमारी की वजह से नई पोस्टिंग वाली जगह ज्वाइन करने से इनकार कर दिया था।

न्यायाधीश मीरा छिब्बर की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी कहा कि प्रेमलता स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की भी हकदार नहीं हैं, क्याेंकि उन्हाेंने 20 साल की सेवा पूरी नहीं की है। याचिकाकर्ता ने पोस्टिंग वाली जगह ज्वाइन करने की बजाए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन दिया था। याचिका के अनुसार आगरा स्थित केंद्रीय विद्यालय की शिक्षिका प्रेमलता घई ने विदेश में रह रहे अपने पति से मिलने के लिए छह महीने की छुट्टी के लिए आवेदन दिया था। बहरहाल, उन्हें केवल तीन महीने की छुट्टी दी गई जो 10 नवंबर 1989 से प्रभावी हुई थी। याचिका में कहा गया है कि प्रेमलता ने आठ फरवरी 1990 को डयूटी ज्वाइन किया, लेकिन वह बीमार पड़ गई और छुट्टी बढ़ाए जाने के संबंध में स्वास्थ्य प्रमाण पत्र के साथ आवेदन दिया।
- दैनिक देशबंधु की खबर