30 March, 2008

डॉक्टर और वेतन आयोग

चर्चा गरम है कि डाक्टर प्राइवेट नौकरी की तरफ भाग सकते हैं। छठवें वेतन आयोग की सिफारिश में यह 'मामूली' वेतन वृद्धि सरकारी डाक्टरों को बांध नहीं सकेगी। अगर ऐसा हुआ तो क्या होगा अस्पतालों और मरीजों की बेतहाशा भीड़ का। एक भुक्तभोगी हैं, जिन्हें किडनी का आपरेशन कराने की तारीख छह महीने से नहीं मिल रही। डॉक्टरों की कमी की वजह से एक सर्जन को इतने अधिक आपरेशन करने होते हैं कि वह चाहते हुए भी जल्दी तारीख नहीं दे सकता। बड़े अस्पतालों में विशेषज्ञ डाक्टरों की संख्या आवश्यकता से 25-30 प्रतिशत कम है। कहां हैं डाक्टर?

नवीन गौतम लिखते हैं कि अस्पताल प्रशासकों के मुताबिक मोटी तनख्वाह के बदले कुछ बड़े निजी अस्पताल चले गए, कुछ विदेश निकल गए और कुछ ने अपने नर्सिग होम खोल लिए। सऊदी अरब में एक भारतीय डाक्टर को कम से कम एक लाख रुपये महीना करमुक्त वेतन मिलता है। सरकारी संस्थानों में बीस-बीस साल नौकरी कर चुके पुराने डाक्टर जब नए खून को पैसे में लोटते देखते हैं, तो वे भी बाहर जाने की जुगत लगाते हैं। डाक्टरों के विदेश जाने की प्रवृत्ति का एक अच्छा उदाहरण एम्स है, जहां कुल 42 बैच से निकले 2129 छात्रों में 780 को विदेश बेहतर लगा। जब सरकार बाजार का मुकाबला नहीं कर सकती हैं, तो फिर वेतन की तुलना क्यों की जाती है?

सरकार एक मेडिकल छात्र पर औसतन 25 लाख रुपये खर्च करती है। देश में हर साल लगभग 20 हजार एमबीबीएस और इसके करीब आधे स्नातकोत्तर स्तर के डाक्टर तैयार होते हैं। निजी संस्थानों में एक छात्र को दो से पांच लाख रुपये प्रति वर्ष फीस देनी पड़ती है, जबकि एम्स में 1500 रुपये और मौलाना आजाद जैसे संस्थानों में विभिन्न मदों में प्रति वर्ष 3,670 रुपये शुल्क देने पड़ते हैं। बाकी खर्च सरकार वहन करती है।

No comments:

Post a Comment