उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि कोई नियोक्ता विश्वसनीय मौखिक सबूतों के आधार पर किसी कर्मचारी को दुर्व्यवहार का दोषी बताकर नौकरी से हटा सकता है।
न्यायालय की एक पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि यह जरूरी नहीं कि कंपनी की घरेलू जांच में भी वही मानक अपनाए जाएं जिनकी सिविल कोर्ट उम्मीद करता है।
न्यायालय ने अपने एक पुराने आदेश का हवाला देते हुए कहा कि किसी को दोषी ठहराने के लिए यदि सीधा कोई सबूत न हो तो परिस्थितिजन्य साक्ष्य और मौखिक सबूत पर्याप्त हैं। यह कहते हुए उसने दो कर्मियों की बर्खास्तगी को सही ठहराया।
कर्मचारी स्टीफन और उसके साथी को चोरी के आरोप में नौकरी से हटा दिया गया था। जांच अधिकारी के सामने प्रबंधन के कुछ गवाहों ने उनके खिलाफ बयान दिए। श्रम न्यायालय ने उनकी बर्खास्तगी को यह कहकर नाजायज ठहराया था कि जांच नियमानुसार नहीं की गई है लेकिन मद्रास उच्च न्यायालय ने इस निर्णय को यह कहते हुए पलट दिया कि प्रबंधन के गवाहों की गवाही विश्वसनीय है। तब इन कर्मचारियों ने इस आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील की। उच्चतम न्यायालय ने यह कहते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी कि इन कर्मचारियों ने प्रबंधन के गवाहों के बयान को न तो आंतरिक जांच के समय और न ही दोबारा पुष्टि के समय चुनौती दी थी।
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