बढ़ते तनाव, प्राइवेट सेक्टर की अपेक्षा बेहद कम तनख्वाह और सुविधाओं के चलते अब अफसरों को सेना रास नहीं आ रही है। इसकी बानगी तब देखने को मिली जब रक्षा मंत्री ऐ.के. एंटनी ने राज्यसभा में सेना छोड़ रहे अधिकारियों का ब्योरा दिया। उन्होंने बताया कि वर्ष 2003 से 2007 के बीच कम से कम 2076 आर्मी अधिकारियों ने समय से पहले ही रिटायरमेंट ले लिया। इस दौरान रक्षा सेवा में नौकरी छोड़ने का यह सबसे बड़ा आंकड़ा है।
वायुसेना में इस दौरान समय से पहले सेवानिवृत्तियों और इस्तीफों की संख्या 793 थी जबकि नौसेना में यह आंकड़ा 780 तक पहुंचा गया। राज्यसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए रक्षा मंत्री ने ये बातें कहीं। उन्होंने बताया कि 2003 से 2007 के बीच 3474 आर्मी अधिकारियों ने समय से पहले रिटायरमेंट या इस्तीफे के लिए आवेदन किया था। इनमें से 2076 अधिकारियों को नौकरी छोड़ने की अनुमति दी गई। जबकि एयरफोर्स में कुल 1269 अधिकारियों ने नौकरी छोड़ने के लिए आवेदन किया था। वहीं, नेवी में नौकरी छोड़ने के इच्छुक अधिकारियों की संख्या 954 थी।
उन्होंने कहा कि रक्षा अधिकारियों ने नौकरी छोड़ने के पीछे कई कारण बताए हैं। बर्खास्तगी, बेहद संवेदनशील आधार, निम्न चिकित्सीय श्रेणी और न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता में असफल रहने के आधार पर सभी को नौकरी छोड़ने की अनुमति दी गई है। प्राइवेट सेक्टर में उच्च वेतनमान और अधिक सुविधाएं भी सैन्यकर्मियों के नौकरी छोड़ने का एक बड़ा कारण माना जा रहा है। सैन्य बलों में सेवा शर्तों को देखते हुए वेतनमान काफी कम है जबकि बदल रहे सामाजिक परिवेश और टूटते संयुक्त परिवार के कारण जवानों की मूलभूत आवश्यकताओं को लेकर समस्याएं बढ़ रही हैं। ऐसे में कम आयु में अवकाश प्राप्त करने और पेंशन पर शेष जीवन का गुजारा कठिन हो जाता है।
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