सार्वजनिक क्षेत्र के निदेशकों और सीईओ समेत उच्च अधिकारियों के निजी क्षेत्र में तेजी से बढ़ते पलायन पर केंद्र सरकार की नजर टेढ़ी हो गई है। अब इस्तीफा देकर या रिटायरमेंट के बाद निजी कंपनियों में जाने से पहले इन अधिकारियों को सरकार से मंजूरी लेनी पड़ेगी। इस संबंध में भारी इस्पात और सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय की तरफ से अधिसूचना जारी कर दी गई है। इसके मुताबिक अगर किसी अधिकारी ने जाने का फैसला कर लिया है तो उन्हें संबंधित विभाग के साथ समझौते या बांड के अनुसार सरकार के नुकसान की भरपाई करनी होगी।
कंपनी से इस्तीफा देने या फिर सेवानिवृत्त होने वाले सीईओ सहित कंपनी के कार्यरत निदेशक एक साल के अंदर बिना सरकार की अनुमति के निजी कंपनी में नहीं जा सकते, चाहे वह देशी हो या विदेशी कंपनी। केंद्रीय सतर्कता आयोग के साथ परामर्श के बाद सेवा नियमों में इस बदलाव से 'बागियों' को फिर से सार्वजनिक क्षेत्र में अल्पकालिक और पूर्णकालिक निदेशक के पद आने पर भी रोक लग गई है। हालांकि अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि अगर किसी अधिकारी ने पिछले पांच साल तक नए नियोक्ता के साथ आधिकारिक तौर पर काम नहीं किया हो तो उसे ज्वाइनिंग की अनुमति मिल सकती है।
सरकार अनुमति देने से पहले यह भी देखेगी कि निजी क्षेत्र से उनको जो ऑफर दिया जा रहा है वह इंडस्ट्री की मौजूदा स्केल से बहुत अधिक न हो। साथ ही अगर आवेदन के 30 दिनों के अंदर सरकार से अनुमति नहीं मिलती तो वे निजी क्षेत्र में नई नौकरी ज्वाइन कर सकते हैं। सरकार ने यह फैसला वित्त, पेट्रोलियम और अन्य मंत्रालयों के अधिकारियों के निजी क्षेत्र में पलायन के रुख को देखते हुए लिया है। आरोप है कि ये लोग वहां जाकर अपने नए नियोक्ताओं के लिए लॉबिंग करने में जुटे हुए हैं।
05 August, 2008
पब्लिक सेक्टर के अधिकारियों पर, निजी क्षेत्र में जाने पर पाबंदी
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