पेट्रोलियम मंत्रालय ने सरकारी तेल कंपनियों के अधिकारियों के दो दिसंबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने के निर्णय को बेहद गैर-जिम्मेदाराना बताया है। मंत्रालय ने कहा है कि आयल सेक्टर आफिसर्स एसोसिएशन [ओसा] ने जिन मुद्दों पर हड़ताल पर जाने का फैसला किया है वे आधारहीन हैं। सरकार ने ग्लोबल मंदी के बावजूद तेल कंपनियों के अधिकारियों के वेतन में सालाना 4.5 लाख रुपये से लेकर आठ लाख रुपये तक की वृद्धि का फैसला किया है। इसके बावजूद हड़ताल पर जाने का ओसा का आह्वान समझ से परे है।
पेट्रोलियम सचिव आरएस। पांडे ने तेल कंपनियों के आला अधिकारियों के साथ इस मुद्दे पर बातचीत की है। तेल कंपनियों को साफ तौर पर कहा गया है कि वे सबसे पहले तो यह सुनिश्चित करें कि हड़ताल होने की स्थिति में भी कंपनियों के काम पर खास असर नहीं पड़े। सभी तेल कंपनियों ने आपातकालीन तैयारी भी शुरू कर दी है। खास तौर पर इस बात पर ध्यान दिया जा रहा है कि किसी भी स्थिति में रिफाइनरियों में काम सुचारु रूप से चलता रहे।
सनद रहे कि ओसा ने सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों के कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि करने के सरकार के फैसले को अपर्याप्त मानते हुए दो दिसंबर, 2008 से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का ऐलान किया है। ओसा का कहना है कि सरकार के नए फैसले के बाद उनके मूल वेतन में केवल 30 फीसदी की वृद्धि हो रही है, जबकि मंत्रालय का आकलन है कि मूल वेतन और महंगाई भत्ते के कुल योग पर वृद्धि का फैसला किया गया है जो मूल वेतन का 51 फीसदी होता है।
इसी तरह से ओसा का कहना है कि नया वेतनमान लागू होने के बाद उनके वेतन में कुछ सौ रुपये की वृद्धि होगी। जबकि मंत्रालय का कहना है कि यह वृद्धि ग्रेड-ए के अधिकारियों के लिए 28,032 रुपये की होगी। ग्रेड बढ़ने के साथ वृद्धि और आकर्षक होती जाएगी। ग्रेड-आई के अधिकारियों के लिए यह वेतन वृद्धि 66,771 रुपये प्रति माह की हो जाती है। इस बारे में पेट्रोलियम मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव एस। सुंदरेशन ने हड़ताल पर जाने की धमकी को पूरी तरीके से गैर-जिम्मेदाराना करार दिया है।
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