लागत खर्च में बेहिसाब बढ़ोतरी और अर्थव्यवस्था पर मंदी के बादल छाने की वजह से सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ कंपनियां (Public Sector Undertakings) कर्मचारियों के भत्तों और प्रदर्शन पर आधारित बोनस घटाने की योजना बना रही हैं। कुछ सरकारी कंपनियों के दूसरी तिमाही के नतीजों में उनके मुनाफे में भारी कमी देखने को मिली है। इसलिए ऐसी कुछ कंपनियां कपड़ा धुलाई, क्लब मेम्बरशिप, समाचार पत्र और पत्रिका, मनोरंजन, अनहेल्दी लोकेलिटी एलाउंस, कैश हैंडलिंग, शिक्षा और काम के दौरान प्रदर्शन पर आधारित अतिरिक्त राशि जैसे भत्तों में कटौती करना चाहती हैं।
यह कदम ऐसे वक्त आया है जब निजी सेक्टर की उनकी प्रतिस्पर्धी कंपनियां पहले से ही ऐसे उपाय कर रही हैं। इनमें कलर प्रिंटर का ज्यादा इस्तेमाल न करना, चौबीसों घंटे एयरकंडीशनर न चलाने और कर्मचारियों को लंच कूपन मुहैया कराने पर रोक लगाना शामिल है। सरकारी कंपनियों का मानना है कि कैश हैंडलिंग एलाउंस जैसे भत्तों का कोई मतलब नहीं है और इससे कंपनी पर बोझ बढ़ता है।
पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज (डीपीई) विभाग के एक अधिकारी के अनुसार 'निश्चित रूप से प्रदर्शन वेतन के तौर पर मिलने वाले बोनस में कटौती देखने को मिल सकती है, क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ कंपनियों के नतीजे अच्छे नहीं आए हैं। इकनॉमिक टाइम्स में धीरज तिवारी/ सुभाष नारायण की रिपोर्ट है कि सरकारी तेल कंपनियों के लिए हालात और खराब हो सकते हैं जिन्होंने सबसे ज्यादा मार खाई है। हालांकि, वे भत्ते देना जारी रखना चाहते हैं या नहीं, यह संबंधित कंपनियों और उनके प्रशासनिक मंत्रालयों पर निर्भर करता है।' लागत में कमी लाने की इस प्रक्रिया को इस्तेमाल करने में मुनाफा बनाने वाली कंपनियां भी पीछे नहीं हैं जो बाजारों में नकदी के संकट की वजह से प्रदर्शन आधारित बोनस काटने का मंसूबा रखते हैं। इन कंपनियों की योजना अपने मुनाफे का बड़ा हिस्सा रिजर्व में लगाने की है जिनमें विदेशी परियोजना रिजर्व और आम रिजर्व शामिल है।
भत्तों के तौर पर दी जाने वाली रकम में काफी गिरावट आएगी। फिलहाल, कंपनी की ओर से बांटे जाने वाला मुनाफे का 5 फीसदी हिस्सा है प्रदर्शन आधारित बोनस के तौर पर दिया जा सकता है। इंडियन ऑयल (आईओसी), भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (बीपीसीएल) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (एचपीसीएल) समेत तीनों तेल कंपनियों का संयुक्त नुकसान 2008-09 की पहली तिमाही में 14,000 करोड़ रुपए रहने का अनुमान है। मौजूदा नियमों के मुताबिक सरकारी कंपनियों में दूसरे भत्ते, मूल वेतन के 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकते।
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