मामले के अनुसार कर्नाटक के टैक्स विभाग और राजस्थान के न्यायिक विभाग के दो कर्मचारियों ने क्रमश्र: दिल और गुर्दे की बीमारी का इलाज निजी अस्पतालों में करवाया। दिल के मरीज के बाइपास सर्जरी पर खर्च 150,600 रुपये आया। लेकिन रिइंबर्समेंट पर सरकार ने उसे 39,207 रुपये ही दिए। इसी प्रकार दिल्ली के बत्रा अस्पताल में गुर्दा बदलवाने का खर्च आया 2.11 लाख रुपये लेकिन राज्य सरकार ने भुगतान किया सिर्फ 50,000 रुपये। गुर्दे के मरीज को एम्स में रेफर किया गया था लेकिन बिस्तर उपलब्ध नहीं होने के कारण उन्होंने इमरजेंसी में बत्रा अस्पताल में इलाज करवाया। कम भुगतान मिलने के खिलाफ दोनों कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में रिट दायर की। कर्नाटक और दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाएं स्वीकार कर लीं और सरकारों को आदेश दिया कि कर्मचारियों को इलाज पर आए वास्तविक खर्च का भुगतान किया जाए। इस आदेश का राज्य सरकारों ने चुनौती दी थी।
02 April, 2008
इलाज पर ज्यादा खर्च किया तो भुगतान नहीं
सरकारी कर्मचारी अपनी मर्जी के अस्पतालों में इलाज करवाने से पहले सोच लें। उन्हें इलाज खर्च का उतना ही भुगतान होगा जितना उनके विभाग ने नियमानुसार तय किया है। नियम से ज्यादा का भुगतान किसी भी स्थिति में नहीं किया जा सकता। यह व्यवस्था देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दो सरकारी कर्मियों को दिए जाने वाले तय मेडिकल खर्च से ज्यादा भुगतान देने के हाईकोर्ट के फैसलों को रद कर दिया। जस्टिस एस।बी। सिन्हा और वी।एस। सिरपुरकर की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि संविधान के अनुच्छेद-३०९ के तहत राज्य सरकारों को अपने कर्मचारियों के चिकित्सा खर्च को तय करने और उनके नियम बनाने का अधिकार है। इन नियमों में उदारता बरतने का कोई प्रावधान नहीं किया गया है लेकिन मामला अत्यंत गंभीर बीमारियों का है इसलिए अनुच्छेद-142 के तहत असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सर्वोच्च अदालत आदेश देती है कि इन दो मामलों में कर्मचारियों को अतिरिक्त भुगतान दे दिया जाए। लेकिन स्पष्ट किया जाता है कि यह आदेश नजीर के रूप में न लिया जाए।
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