सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी सरकारी कर्मचारी को केवल इस आधार पर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेने का अधिकार नहीं मिल जाता, क्योंकि इस योजना के तहत उसे पहले पेशकश की गई थी। इस मामले में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की कोई योजना लाई जाती है तो यह कर्मचारी के लिए एक पेशकश होती है, लेकिन नियोक्ता के लिए यह बाध्यकारी नहीं है।
जस्टिस एसबी सिन्हा और वीएस सिरपुरकर की बेंच ने National Textile Corporation (एनटीसी) की याचिका की सुनवाई करते हुए कहा, ‘कर्मचारी को सिर्फ इसलिए वीआरएस लेने का कानूनी हक नहीं मिल जाता कि उसे इसके एवज में कुछ अतिरिक्त वित्तीय लाभ हासिल होगा।’ कोर्ट ने यह भी कहा है कि वरस का दावा तभी किया जा सकता है, जब कर्मचारी सेवा में हो, न कि पेंशन पात्रता के बाद।
मामला यह था कि एनटीसी के कर्मचारी एमआर जाधव ने VRS योजना के तहत मई २००० में आवेदन किया था। एनटीसी ने वित्तीय समस्याओं का हवाला देते हुए सितंबर २००० में जाधव को स्वैच्छिक सेवालिवृति देने में असमर्थता जताई थी। जाधव ने २००१ में पेंशन पात्रता हासिल कर ली थी। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जाधव के दावे को सही ठहराते हुए एनटीसी को उसे सेवानिवृति देने के निर्देश दिए थे। एनटीसी ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
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