सरकारी कर्मचारियों के लिए अच्छी खबर यह है कि उनके एरियर पर आयकर बोझ हल्का हो सकता है। इसके लिए विभाग ने आयकर की धारा 89-1 का विकल्प चुनने का अधिकार दिया है। लेकिन यह फैसला किसी भी कर्मचारी के लिए अपनी इच्छा पर ही आधारित होगा।
वहीं दूसरी ओर चालू वित्त वर्ष के दौरान पूरे अथवा 40 फीसदी एरियर पर टीडीएस (स्रोत पर कर कटौती) को लेकर आयकर विभाग को वर्ष 1999 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से जारी एक फैसला हाथ लगा है। इस फैसले के जरिए पूरे एरियर को टैक्स के दायरे में लाने का पक्ष लिया गया है। जहां तक एरियर के मामले में टैक्स बोझ हल्का करने की बात है, उसके लिए धारा 89-1 का विकल्प सामने है। इसके तहत चालू वित्त वर्ष सहित पिछले तीन वित्त वर्ष के दौरान बगैर एरियर और एरियर सहित आयकर बोझ निकाला जाएगा।
इन सभी सालों के लिए एरियर सहित टैक्स बोझ में एरियर रहित टैक्स बोझ को घटा दिया जाएगा। चालू वित्त वर्ष के दौरान हासिल अंतर में पिछले तीन सालों के अंतर को जोड़कर घटा दिया जाएगा। इससे प्राप्त राशि को चालू वित्त वर्ष में देय समग्र टैक्स में घटाया जाएगा। यही देय टैक्स होगा।
यह रास्ता इसलिए अपनाया जा रहा है क्योंकि बीते सालों में सरकारी नहीं अदा की गई देय राशि पर ब्याज लागू न किया जाए, अन्यथा इसे कर्मचारियों के साथ अन्याय माना जाएगा। इस प्रकार की गणना से बहुत से कर्मचारी आयकर दर के ऊंचे स्लैब में जाने और अधिभार यानी सरचार्ज देने से बचने की संभावना बनेगी।
वहीं दूसरी ओर आयकर विभाग के हाथ सुप्रीम कोर्ट की ओर से 26 अक्टूबर, 1999 को जारी एक फैसला हाथ लगा है। इसके मुताबिक पेबल यानी देय राशि की व्याख्या आयकर कानून की मंशा के मुताबिक ही की गई है। मतलब यह एरियर चाहे वह किसी खास वर्ष में अदा किया गया हो अथवा नहीं, उसी खास वर्ष के दौरान ही कर दायरे में ही आएगा।
(दैनिक हिन्दुस्तान में विकास द्विवेदी की शब्दश: रिपोर्ट)
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