कड़े अनुशासन में चलने वाली फौज ने वेतनमान में विसंगतियां दूर न होने के चलते नए वेतनमान को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है। सशस्त्र सेना के तीनों बलों ने कड़ा रुख अपनाते हुए लेखा कार्यालय में संशोधित वेतन के मुताबिक बिल जमा नहीं कराए हैं। इसका साफ मतलब है कि उन्हें छठे वेतन आयोग व उसके बाद समीक्षा में तय किया गया वेतनमान स्वीकार्य नहीं है।
रक्षा बलों के इस कड़े रुख से उनकी मांगें न माने जाने पर 'काली दीवाली' मनाने की धमकी पर अमल शुरू हो गया है। हालांकि मुख्य एतराज मध्यम स्तर के अधिकारियों के वेतन में विसंगति को लेकर है, पर इस मसले पर पूरी फौज एकजुट नजर आ रही है। मध्यम स्तर के अधिकारियों को सिविल व अर्द्धसैनिक बलों के अधिकारियों से कम वेतनमान दिया गया है, जबकि पहले उनका वेतनमान इनसे अधिक होता था। सरकार ने गुरुवार को सैद्धांतिक तौर पर बलों की इस मांग को मान लिया था कि पिछली बार मिले वेतन के आधार पर जवानों की पेंशन में 70 फीसदी वृद्धि बहाल होगी, पर बाकी मांगों पर चुप्पी साध रखी है।
छठे वेतन आयोग ने अपनी सिफारिश में जवानों को 50 फीसदी पेंशन लाभ के साथ ही उन्हें अर्द्घसैनिक बलों व केंद्रीय पुलिस बल में शामिल होने का विकल्प दिया है। लेकिन असल में रिटायरमेंट के बाद दूसरी नौकरी के विकल्प पर मुहर नहीं लगाई गई है। इस आक्रोश को सामने रखने के लिए ही चीफ्स आफ स्टाफ कमेटी के प्रमुख व नौसेनाध्यक्ष एडमिरल सुरीश मेहता व थल सेनाध्यक्ष जनरल दीपक कपूर ने गुरुवार को कैबिनेट सचिव के.एम. चंद्रशेखर से मुलाकात की थी।
वित्त मंत्रालय बजट की कमी का रोना रो रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री के एक अक्टूबर को अमेरिका से लौटने के बाद ही इस संबंध में कोई फैसला संभव होगा। रक्षा बलों के कड़े रुख से साफ है कि इस दीवाली पर 50 लाख सिविल व अन्य कर्मी, अधिकारी नए वेतनमान की खुशी मनांएगे, पर 13 लाख रक्षा कर्मी व अधिकारी पुराने वेतन के साथ ही विरोध जताएंगे। इधर पूर्व सैनिक मूवमेंट के प्रमुख रिटायर्ड मेजर जनरल सतबीर सिंह ने कहा कि इस जंग में पूर्व सैनिक भी अपने सेनाध्यक्षों के साथ हैं।
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