सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों के वेतनमान में संशोधन पर सिफारिश देने के लिए गठित समिति के सुझावों पर हाल-फिलहाल में फैसला होने की संभावना टलती नजर आ रही है। इसका प्रमुख कारण यह है कि सार्वजनिक उपक्रमों (PSU) के सर्वोच्च संगठन स्कोप (Standing Conference of Public Enterprises) ने ही समिति की सिफारिशों को कठघरे में ला दिया है। स्कोप ने कहा है कि न्यायाधीश एमजे राव की अध्यक्षता वाली समिति ने सभी वर्गो के कर्मचारियों और अधिकारियों को एक ही आधार पर वेतन वृद्धि का सुझाव दिया है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
स्कोप ने कहा है कि वैसे तो राव समिति की सिफारिशों को लागू करने से पीएसयू कर्मियों के वेतन में वृद्धि होगी,लेकिन वक्त की मांग को देखते हुए यह वृद्धि उपयोगी नहीं कही जा सकती है। मुद्दे को आगे ले जाते हुए स्कोप ने अपने सभी सदस्यों से सुझाव मंगवाए हैं। इन सुझावों के आधार पर संगठन लोक उपक्रम विभाग और भारी उद्योग मंत्रालय के साथ वेतन संशोधन पर नए सिरे बातचीत शुरू करने की योजना बना रहा है। स्कोप के मुताबिक आज के दौर में आय,कर्मचारियों की संख्या और भौगोलिक स्थिति के आधार पर ही वेतन वृद्धि कर देना पर्याप्त नहीं है। स्कोप इस बारे में सभी नवरत्न कंपनियों को 'ए प्लस' श्रेणी में रखने के पक्ष में है ताकि इनको अपने बेहतरीन कर्मचारियों को निजी क्षेत्रों के हाथों में चले जाने से रोकने में सहूलियत हो।
स्कोप का कहना है कि यह अर्थव्यवस्था के हित में है कि अच्छा प्रदर्शन करने वाली सरकारी कंपनियों और निजी क्षेत्र के वेतनमान में बहुत ज्यादा अंतर नहीं हो। राव समिति की सिफारिशों को लागू करने के बावजूद अंतर बना रहेगा। स्कोप का सुझाव है कि सरकार की वेतन वृद्धि की नीति इस प्रकार की होनी चाहिए कि व्यक्तिगत प्रदर्शन के आधार पर हमेशा ही इसमें बढ़ोतरी की संभावना बनी रहे। साथ ही सरकारी कंपनियों के प्रबंधन को यह अधिकार होना चाहिए कि वह वेतनमान में परिस्थितियों के मुताबिक संशोधन कर सके।
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