छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से भी ज्यादा पगार देने के सरकार के फैसले के बावजूद वेतन विसंगतियों को लेकर शिकायतें थम नहीं रही हैं। अब भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारियों की शिकायत यह है कि उनके वेतनमान निर्धारण में केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले की अवहेलना की गई है। आईपीएस अधिकारियों के मुताबिक कैबिनेट के फैसले की तोड़-मरोड़ कर व्याख्या की गई है। IPS के कुछ वेतनमान इस तरह से प्रस्तुत किए गए हैं, जिनका वेतन आयोग और कैबिनेट के फैसले में कोई उल्लेख नहीं है। लिहाजा आईपीएस संघ इस पर खासा नाराज है। केंद्र सरकार को अपनी शिकायत भेज कर उसने इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई तक की मांग कर डाली है।
शिकायत पत्र में आईपीएस अधिकारियों ने आरोप लगाया है कि इस सिलसिले में आयोग की सिफारिशों की व्याख्या कुछ इस तरह से की गई है कि आईएएस और आईएफएस अधिकारियों को वेतन वृद्धि का लाभ कैबिनेट के फैसले से ज्यादा ही मिलेगा। इससे दूसरी सेवाओं के साथ अन्याय हो रहा है। यानी सिफारिशें लागू होने के बाद जहां दूसरी सेवाओं के अधिकारियों का मौजूदा मूल वेतन 15,100 रुपये प्रति माह से 47,230 रुपये मासिक हो रहा है, वहीं सिफारिश की गलत व्याख्या की वजह से आईएएस का यही मूल वेतन 48,390 रुपये प्रति माह पहुंच रहा है। मांग पत्र में कहा गया है कि आईएएस और आईएफएस को आईपीएस से ऊपर रखने को लेकर आयोग की सिफारिश का फायदा उठाते हुए यह कदम उठाया गया है। गौरतलब है कि वेतन आयोग ने आईएएस और आईएफएस के वर्चस्व को कायम रखने के लिए उनके वेतन बैंड में दो अतिरिक्त वेतन वृद्धि का प्रावधान किया था।
आईपीएस अधिकारियों का तर्क है कि अगर वरिष्ठ वेतनमान (एसटीएस) और कनिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (जेएजी) स्तरों पर IAS वर्ग को दो वेतन वृद्धि देनी भी है तो यह बढ़ोतरी उन्हें एसटीएस (6600 रुपये) के लिए पदोन्नति देते समय कर देनी चाहिए। लेकिन 7600 रुपये के वेतन ग्रेड के लिए उनकी पदोन्नति के समय उन्हें दो अतिरिक्त वेतन वृद्धि देने से उन्हें इस स्तर पर चार वेतन वृद्धि हासिल हो जाएंगी जो कैबिनेट के फैसले के खिलाफ है। आईपीएस का आरोप है कि इससे निदेशक के पद पर आसीन आईएएस को पुलिस महानिदेशक से ज्यादा वेतन मिलने लगेगा, जबकि दोनों सुपर टाइम स्केल में आते हैं।
(जागरण से साभार)
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