केंद्रीय कर्मचारियों की जेब भारी करने के साथ-साथ छठा वेतन आयोग उनकी सेवानिवृत्ति आयु 60 से बढ़ाकर 62 साल करने की सिफारिश पर विचार कर रहा है। श्रम और आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ सेवानिवृत्ति आयु में दो साल की बढ़ोतरी करने की राय आयोग के आला अधिकारी को देने की तैयारी में हैं। इस सलाह के पीछे उनकी दलील है कि इस तरह सरकार पेंशन बिल पर पड़ने वाला बोझ कम से कम दो साल के लिए टाल सकती है।
संभावित वेतन वृद्धि की वजह से सरकार पर पड़ने वाले बोझ से निपटने के तरीके तलाशने के तहत ही आयोग सेवानिवृत्ति से जुड़े पहलू पर विचार कर रहा है। इस सिलसिले में हिसाब-किताब लगा रहे विशेषज्ञ मान रहे हैं कि सेवानिवृत्ति आयु में दो साल की बढ़ोतरी से सरकार को काफी राहत मिल सकती है। ऐसा नहीं करने से सरकार को 'दोहरे आर्थिक बोझ' से दो-चार होना पड़ेगा।
एक ओर आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद वेतन वृद्धि से पड़ने वाला वित्तीय भार तो होगा ही, सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन व उससे जुड़े तमाम आर्थिक दावों की लंबी फेहरिस्त भी होगी। वित्त मंत्रालय के आला अधिकारियों के साथ चंद रोज पहले हुई चर्चा में इस मामले का बड़ी गंभीरता से आकलन किया गया। वित्त मंत्रालय मान रहा है कि भविष्य में पेंशन बिल के भुगतान पर होने वाला खर्च वेतन के चलते पड़ने वाले आर्थिक बोझ से किसी तरह कम नहीं होगा। इसके लिए विशेषज्ञ अपने आंकड़े भी वेतन आयोग तक पहुंचा रहे हैं। उनका कहना है कि 2007-08 में केंद्रीय कर्मचारियों का पेंशन बिल वेतन बिल से ऊपर निकल सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार 2006-07 में पेंशन और उससे जुड़ी अन्य वित्तीय जिम्मेदारियों को पूरा करने पर सरकार को 39,074 करोड़ रुपये का भार पड़ा था। वेतन संबंधी भुगतान से पड़ने वाला बोझ 40,047 करोड़ रुपये का था। अगर इन आंकड़ों को आधार बनाया जाए तो मौजूदा वित्तीय वर्ष में पेंशन पर होने वाला खर्च निश्चित रूप से केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन के खर्च से आगे निकल जाएगा।
वेतन आयोग को बताया गया है कि रेल कर्मियों के मामले में यह तो हो ही रहा है। अब अगर इन विशेषज्ञों की दलीलें आयोग के गले उतरीं तो 60 साल पूरा करके सेवानिवृत्ति की दहलीज पर खड़े कर्मचारियों को दो साल और सेवाएं देनी होंगी।
No comments:
Post a Comment