अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के International Institute for Labor Studies की एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि मजबूत आर्थिक विकास से करोड़ों नई नौकरियों के सृजित होने के बावजूद दुनिया भर में आय विसंगति की खाई 1990 के दशक के बाद से लगातार बढ़ी है। । इंस्टीट्यूट के निदेशक रेमंड टोरस ने कहा कि रिपोर्ट का निष्कर्ष यही है कि धनी और निर्धनतम घरों में अंत 1990 के दशक से ही बढ़ा है। उन्होंने कहा कि अगर दीर्घकालिक ढांचागत सुधार नहीं अपनाए जाते हैं तो मौजूदा वैश्विक वित्तीय संकट, स्थिति को बदतर ही करेगा।
संगठन (आईएलओ) द्वारा जारी इस अध्ययन में कहा गया है कि मौजूदा वित्तीय एवं आर्थिक संकट का अधिकतर बोझ उन करोड़ों लोगों का उठाना पड़ेगा जिन्हें पिछले आर्थिक विकास का लाभ नहीं मिला था। इसमें कहा गया है कि 1990 के दशक से 2007 के बीच अर्थव्यवस्थाओंके विस्तार से वैश्विक रोजगार में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई। लेकिन इसके साथ ही आय में अंतर भी बढ़ा है। अध्ययन के अनुसार अत्यधिक आय विसंगति को उच्च अपराध दर, निम्न जीवन प्रत्याशा से जोड़ा जा सकता है। इसमें कहा गया है कि पहले ही अनेक देशों में यह धारणा है कि वैश्वीकरण आबादी के अधिकतर हिस्से के लाभ के लिए काम नहीं कर रहा है।
रिपोर्ट में आय में बढ़ते अंतर को शीर्ष कार्यकारियों तथा आम कर्मचारी के वेतन में अंतर से भी जोड़ा गया है। उदाहरण के रूप में 2007 में अमेरिका की 15 शीर्ष कंपनियों के CEO की आय, आम कर्मचारी की तुलना में 520 गुना अधिक रही।
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bharat me aur jyada ho gaya hai
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