केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) ने कहा है कि छुट्टी को अधिकार के रूप में विचार नहीं किया जा सकता है। कैट ने कहा कि कर्मचारी का काम पर अनुपस्थित रहना डयूटी पर नहीं बिताया गया समय माना जाना चाहिए। प्रेमलता घई की याचिका पर सुनवाई करते हुए कैट ने कहा कि यह तय नियम है कि संबंधित अधिकारियाें की ओर से छुट्टी की मंजूरी मिले बिना छुट्टी को अधिकार के रूप में विचार नहीं किया जा सकता। इसीलिए आठ फरवरी 1990 से 16 अक्टूबर 1994 की अवधि को बिना मंजूरी के डयूटी से अनुपस्थित माना जाए। प्रेमलता ने छुट्टी बढ़ाए जाने का आवेदन दिया था और बीमारी की वजह से नई पोस्टिंग वाली जगह ज्वाइन करने से इनकार कर दिया था।
न्यायाधीश मीरा छिब्बर की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी कहा कि प्रेमलता स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की भी हकदार नहीं हैं, क्याेंकि उन्हाेंने 20 साल की सेवा पूरी नहीं की है। याचिकाकर्ता ने पोस्टिंग वाली जगह ज्वाइन करने की बजाए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन दिया था। याचिका के अनुसार आगरा स्थित केंद्रीय विद्यालय की शिक्षिका प्रेमलता घई ने विदेश में रह रहे अपने पति से मिलने के लिए छह महीने की छुट्टी के लिए आवेदन दिया था। बहरहाल, उन्हें केवल तीन महीने की छुट्टी दी गई जो 10 नवंबर 1989 से प्रभावी हुई थी। याचिका में कहा गया है कि प्रेमलता ने आठ फरवरी 1990 को डयूटी ज्वाइन किया, लेकिन वह बीमार पड़ गई और छुट्टी बढ़ाए जाने के संबंध में स्वास्थ्य प्रमाण पत्र के साथ आवेदन दिया।
- दैनिक देशबंधु की खबर
न्यायाधीश मीरा छिब्बर की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी कहा कि प्रेमलता स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की भी हकदार नहीं हैं, क्याेंकि उन्हाेंने 20 साल की सेवा पूरी नहीं की है। याचिकाकर्ता ने पोस्टिंग वाली जगह ज्वाइन करने की बजाए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन दिया था। याचिका के अनुसार आगरा स्थित केंद्रीय विद्यालय की शिक्षिका प्रेमलता घई ने विदेश में रह रहे अपने पति से मिलने के लिए छह महीने की छुट्टी के लिए आवेदन दिया था। बहरहाल, उन्हें केवल तीन महीने की छुट्टी दी गई जो 10 नवंबर 1989 से प्रभावी हुई थी। याचिका में कहा गया है कि प्रेमलता ने आठ फरवरी 1990 को डयूटी ज्वाइन किया, लेकिन वह बीमार पड़ गई और छुट्टी बढ़ाए जाने के संबंध में स्वास्थ्य प्रमाण पत्र के साथ आवेदन दिया।
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