अगर आपके बॉस इस खयाल के हैं कि दफ्तर सिर्फ काम की जगह है, हंसी-मजाक की नहीं, तो उन्हें इस ताजा स्टडी रिपोर्ट से वाकिफ कराएं।
अमेरिकी रिसर्चरों के मुताबिक दफ्तर और काम की अन्य जगहों पर हल्के- फुल्के हंसी-मजाक से न सिर्फ कर्मचारियों के बीच तालमेल और अच्छे रिश्ते विकसित होते हैं, बल्कि उनकी परफॉरमेंस पर भी इसका पॉजिटिव असर होता है।
कोलंबिया की मिजौरी यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने साइकॉलजी, सोशियॉलजी, एंथ्रपॉलजी, फिलॉसफी और कम्यूनिकेशन्स के क्षेत्र में की गईं सैकड़ों स्टडीज के आधार पर इंसानी इमोशन, ह्यूमर, मूड से जुड़े सिद्धांतों का विश्लेषण किया। 'द केस फॉर डिवेलपिंग न्यू रिसर्च ऑन ह्यूमर एंड कल्चर इन ऑर्गनाइजेशन्स' नामक स्टडी के नतीजों में कहा गया कि ह्यूमर को परखने, हंसने और दूसरों को हंसाने की काबिलियत का शरीर पर मनोवैज्ञानिक असर होता है। यह लोगों को एक-दूसरे से जुड़ने में मदद करता है।
स्टडी की अगुआई करने वाले मनोवैज्ञानिक क्रिस रॉबर्ट के मुताबिक रोजमर्रा की जिंदगी में अपने जोक से दूसरों को हंसाना असल में एक गंभीर बात है। दफ्तर में हल्के-फुल्के मजाक से काम करने वालों की क्रिएटिविटी बढ़ती है। कर्मचारियों के बीच टीम की भावना विकसित होती है और संगठन का कुल मिलाकर परफॉरमेंस बेहतर होता है। क्रिस के मुताबिक कर्मचारियों पर सबसे ज्यादा पॉजिटिव असर उन लतीफों का होता है, जो दफ्तर के कामकाज या कल्चर पर आधारित होते हैं।
स्टडी के दौरान रिसर्चरों ने यह भी पाया कि विभिन्न संस्कृतियों के लोगों के बीच हंसना-हंसाना ज्यादा मुश्किल होता है। ऐसा मल्टीनैशनल कंपनियों में अक्सर देखने में आता है। यह पता करना कठिन हो जाता है कि कौन सी बात सबके लिए फनी होगी। यानी जरूरी नहीं कि जिस बात पर कोई अमेरिकी ठहाके लगाकर हंसता हो, उस पर कोई भारतीय या चीनी भी हंसे। ऐसे में कुछ लोग जोक या हंसी मजाक से परहेज करने की सलाह देते हैं। लेकिन रिसर्चरों ने इस सुझाव को खारिज करते हुए कहा कि मल्टी कल्चरल माहौल में भी हंसी-मजाक की न सिर्फ गुंजाइश होती है, बल्कि बहुत पॉजिटिव असर होता है।
रिसर्चरों के मुताबिक ह्यूमर की सबसे स्वीकार्य थ्योरी यह है कि लोग किसी चीज को तब फनी पाते हैं, जब आप दो चीजों को ऐसे जोड़ें कि जिसकी किसी ने उम्मीद न की हो। यानी हंसने-हंसाने में कॉमन एक्सपेक्टेशन की काफी अहमियत होती है। मल्टी कल्चरल माहौल में काम करने वाले लोग कई मायनों में कॉमन उद्देश्य और साझा उम्मीदों से जुड़े जाते हैं। इन चीजों पर आधारित लतीफे बेशक उन सभी को गुदगुदाते हैं।
अमेरिकी रिसर्चरों के मुताबिक दफ्तर और काम की अन्य जगहों पर हल्के- फुल्के हंसी-मजाक से न सिर्फ कर्मचारियों के बीच तालमेल और अच्छे रिश्ते विकसित होते हैं, बल्कि उनकी परफॉरमेंस पर भी इसका पॉजिटिव असर होता है।
कोलंबिया की मिजौरी यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने साइकॉलजी, सोशियॉलजी, एंथ्रपॉलजी, फिलॉसफी और कम्यूनिकेशन्स के क्षेत्र में की गईं सैकड़ों स्टडीज के आधार पर इंसानी इमोशन, ह्यूमर, मूड से जुड़े सिद्धांतों का विश्लेषण किया। 'द केस फॉर डिवेलपिंग न्यू रिसर्च ऑन ह्यूमर एंड कल्चर इन ऑर्गनाइजेशन्स' नामक स्टडी के नतीजों में कहा गया कि ह्यूमर को परखने, हंसने और दूसरों को हंसाने की काबिलियत का शरीर पर मनोवैज्ञानिक असर होता है। यह लोगों को एक-दूसरे से जुड़ने में मदद करता है।
स्टडी की अगुआई करने वाले मनोवैज्ञानिक क्रिस रॉबर्ट के मुताबिक रोजमर्रा की जिंदगी में अपने जोक से दूसरों को हंसाना असल में एक गंभीर बात है। दफ्तर में हल्के-फुल्के मजाक से काम करने वालों की क्रिएटिविटी बढ़ती है। कर्मचारियों के बीच टीम की भावना विकसित होती है और संगठन का कुल मिलाकर परफॉरमेंस बेहतर होता है। क्रिस के मुताबिक कर्मचारियों पर सबसे ज्यादा पॉजिटिव असर उन लतीफों का होता है, जो दफ्तर के कामकाज या कल्चर पर आधारित होते हैं।
स्टडी के दौरान रिसर्चरों ने यह भी पाया कि विभिन्न संस्कृतियों के लोगों के बीच हंसना-हंसाना ज्यादा मुश्किल होता है। ऐसा मल्टीनैशनल कंपनियों में अक्सर देखने में आता है। यह पता करना कठिन हो जाता है कि कौन सी बात सबके लिए फनी होगी। यानी जरूरी नहीं कि जिस बात पर कोई अमेरिकी ठहाके लगाकर हंसता हो, उस पर कोई भारतीय या चीनी भी हंसे। ऐसे में कुछ लोग जोक या हंसी मजाक से परहेज करने की सलाह देते हैं। लेकिन रिसर्चरों ने इस सुझाव को खारिज करते हुए कहा कि मल्टी कल्चरल माहौल में भी हंसी-मजाक की न सिर्फ गुंजाइश होती है, बल्कि बहुत पॉजिटिव असर होता है।
रिसर्चरों के मुताबिक ह्यूमर की सबसे स्वीकार्य थ्योरी यह है कि लोग किसी चीज को तब फनी पाते हैं, जब आप दो चीजों को ऐसे जोड़ें कि जिसकी किसी ने उम्मीद न की हो। यानी हंसने-हंसाने में कॉमन एक्सपेक्टेशन की काफी अहमियत होती है। मल्टी कल्चरल माहौल में काम करने वाले लोग कई मायनों में कॉमन उद्देश्य और साझा उम्मीदों से जुड़े जाते हैं। इन चीजों पर आधारित लतीफे बेशक उन सभी को गुदगुदाते हैं।
No comments:
Post a Comment