आर्थिक मुद्दों पर बेबाक टिप्पणी के लिए मशहूर योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने श्रम सुधार को सेकंडरी करार दिया है। उनका कहना है कि अगर पढ़े-लिखे नौजवानों को नौकरी देनी है तो इकॉनमी ग्रोथ रेट बढ़ाना ही सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। रोजगार बढ़ाने के लिए श्रम कानूनों में बदलाव करने की जरूरत नहीं है। अगर इकॉनमी ग्रोथ रेट 9 से 10 फीसदी के बीच कायम रखने में भारत कामयाब रहा तो श्रम कानूनों में बदलाव किए बिना ही रोजगार के ज्यादा अवसर पैदा किए जा सकते हैं।
आम बजट से ठीक पहले योजना आयोग के उपाध्यक्ष के इस बयान को काफी गंभीरता से लिया जा रहा है। इसे एक संकेत भी माना जा रहा है कि सरकार इस बजट में उद्योग जगत की श्रम कानूनों में बदलाव करने की मांग को तवज्जो नहीं देगी। मोंटेक सिंह के इस बयान को इस मसले पर सरकार का ताजा नजरिया माना जा रहा है।
मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने कहा कि बेशक यह बात सही है कि श्रम कानूनों को लचीला बनाने से रोजगार के अवसरों को बढ़ाया जा सकता है। मगर यह तभी संभव है जब इकॉनमी ग्रोथ रेट ज्यादा रहे। इसके अलावा श्रम कानूनों में बदलाव को लेकर कई तकनीकी पहलू ऐसे हैं, जिनपर सहमति बनाना जरूरी है। बिना सभी की सहमति के श्रम कानूनों में बदलाव करना तर्कसंगत नहीं रहेगा। इकॉनमी ग्रोथ रेट सीधे तौर पर प्रॉडक्शन से जुड़ा हुआ है। अगर हम श्रमिकों की प्रॉडक्शन क्षमता बढ़ाने में सफल रहे तो उससे न केवल देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी बल्कि बाजार में रौनक भी बढ़ेगी। यह रौनक आम लोगों की जेब भी भरेगी और उन्हें ज्यादा काम भी देगी। चीन में श्रमिकों की उत्पादक क्षमता बढ़ने का अहम कारण यही है। चीन में प्रति व्यक्ति उत्पादक क्षमता भारत के प्रति व्यक्ति से तीन से चार गुना ज्यादा है। यही कारण है कि चीन, बाजार और मजबूत इकॉनमी के मामले में भारत से काफी आगे है।
योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि यह बात काफी चुभती है कि देश में पढ़े-लिखे नौजवानों के पास नौकरी नहीं है। नौजवानों को उच्च शिक्षा देने के साथ-साथ ढांचागत सुविधाओं के विकास और वर्तमान श्रमिकों को हल्की-फुल्की उपयोगी ट्रेनिंग दे कर उनकी रोजगार क्षमता को बढ़ाना चाहिए। वर्तमान में बेरोजगारी दर 8 फीसदी है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या कुल आबादी के परिप्रेक्ष्य में 28 फीसदी तक पहुंच गई है। इससे साफ जाहिर है कि लोगों की वास्तविक मजदूरी बढ़ नहीं रही है। रोजगार न मिलने से युवकों में निराशा फैलती जा रही है। गरीब और अमीर के जीवन स्तर में बढ़े फर्क से सामाजिक तनाव पैदा होता है।
उद्योग जगत की अहम मांग है कि श्रम कानूनों में बड़े पैमाने पर बदलाव किए जाएं। उद्योग जगत इसमें लचीलापन चाहता है ताकि कर्मचारियों से उनकी योग्यता के अनुसार काम लेने में उन्हें परेशानी न हो। उनकी मांग यह भी है कि कारोबार में उतार-चढ़ाव को देखते हुए उन्हें कर्मचारियों की छंटनी का अधिकार भी दिया जाए।
21 February, 2008
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अशरीरी विकास चाहते हैं ये लोग। लेबर रिफॉर्म ज़रूरी हैं और नए रोज़गार के अवसर भी।
ReplyDeleteबहुत काम का ब्लॉग है आपका।
best of luck...