23 February, 2008

पदोन्नति और नौकरी की नीति नियोक्ता तय करे : कोर्ट

ताजा फिसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी कर्मचारी को रखना अथवा या नौकरी से निकालना (रिटायरमेंट कहिये जनाब!) उस कंपनी का विशेषाधिकार है और अदालतों को इस तरह के मामलों में नहीं पड़ना चाहिए।

जस्टिस तरूण चटर्जी और जस्टिस एच. एस. बेदी की पीठ ने कहा कि इस बात पर अदालत को किसी तरह की राय नहीं व्यक्त करनी चाहिए कि किसे और किस चरण और स्थिति में रिटायर किया जाना चाहिए। यह पूरी तरह से नौकरी पर रखने वाले का विशेषाधिकार है। चपरासी जैसे कर्मचारी याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि उन्हें दी गई अनिवार्य सेवानिवृत्ति अवैध और भेदभावपूर्ण थी क्योंकि शीर्ष स्तर पर अधिकारियों को रखे हुए हैं।
और एक दूसरी पीठ ने यह फैसला दिया है कि कंपनी ही तय कर सकती हैं प्रमोशन का तरीका और इसके लिए कर्मचारी का चुनाव। यह किसी भी अथॉरिटी का विशेषाधिकार है। खुद कोई कर्मचारी इस बारे में अपने नियोक्ता को निर्देश नहीं दे सकता है। यह फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रमोशन से जुड़ी पॉलिसी बनाना उस संगठन का काम है।

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