आयोग ने अपनी रिपोर्ट में महंगाई और महंगाई भत्ते पर काफी बारीकी से रोशनी डाली है। आयोग की यह सिफारिश बड़ी रोचक है कि सरकारी कर्मियों के उपभोग व खर्च का अलग से सर्वेक्षण कर एक मूल्य सूचकांक बनाना चाहिए और उसके आधार पर महंगाई की दर निकालकर महंगाई भत्ते का निर्धारण होना चाहिए। अभी तक महंगाई भत्ते का निर्धारण औद्योगिक श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आधार पर होता रहा है। आयोग मानता है कि इस सूचकांक के लिए जिन परिवारों के बीच सर्वेक्षण किया जाता है, उनका खर्च व उपभोग का ढंग सरकारी कर्मियों के परिवारों से काफी भिन्न है। इसीलिए महंगाई की सही तस्वीर सामने नहीं आती। हो सकता है सरकार के गले यह बात उतर जाए और कर्मियों के लिए महंगाई अलग से नापी जाए।
महंगाई भत्ते की बात इतनी ही नहीं है। दैनिक जागरण लिखता है कि आयोग ने महंगाई नापने और भत्ता तय करने की जो नई और पेचीदा गणित सुझाई गई है, उसका सार यह है कि इसे नापने का पैमाना जल्दी-जल्दी बदलेगा। इस समय जिस पैमाने का इस्तेमाल हो रहा है, वह 1996 की कीमतों पर आधारित है। 1996 की तुलना में आज कीमतें काफी बढ़ी हैं, इसलिए महंगाई का आंकड़ा बड़ा दिखता है और भत्ता भी ज्यादा मिलता है। वेतन आयोग इसे सालाना आधार पर बदलना चाहता है। इससे महंगाई का आंकड़ा कम दिखेगा। नतीजतन सरकारी कर्मचारियों को आज जितना भत्ता दिया जा रहा है, उससे कम भत्ता देने की जरूरत होगी। अगर आयोग की यह बात सरकार को पते की लगी, तो फिर महंगाई भले ही बढ़ती रहे; लेकिन भाई सा'ब, महंगाई भत्ता कम होने का वक्त आ गया है।
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