26 February, 2008

वेतन आयोग की रिपोर्ट ४ अप्रैल तक

सरकार ने मंगलवार को कहा कि छठा वेतन आयोग चार अप्रैल तक अपनी रिपोर्ट दे देगा।

राज्यसभा में लिखित जवाब में वित्त राज्यमंत्री पवन कुमार बंसल ने कहा कि आयोग को अपने गठन के 18 माह के भीतर अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देकर उसे सौंप देना है। यह अवधि चार अप्रैल को पूरी हो रही है। आयोग की सिफारिशों को लागू करने के मसले पर बंसल ने कहा कि जब तक आयोग की रिपोर्ट आ नहीं जाती तब तक उसपर अमल की अवधि के बारे में नहीं बताया जा सकता। मीडिया में आई उन खबरों पर जिनमें वेतन में भारी बढ़ोतरी की भविष्यवाणी की गई है, बंसल ने कहा कि आयोग को अपनी रिपोर्ट को अभी अंतिम रूप देना बाकी है। इसलिए इस तरह की खबरें सिर्फ कयास की कहे जाएंगे।

बंसल ने कहा कि आयोग अपनी सिफारिशें लागू होने तक किसी प्रकार की अंतरिम राहत की जरूरत और पात्रता पर भी विचार कर रहा है। गौरतलब है कि छठा वेतन आयोग अक्टूबर-2006 में गठित किया गया था। इसका उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों के वेतन के ढांचे में व्यापक परिवर्तन करना है।

25 February, 2008

वेतन आयोग की रिपोर्ट: सैनिकों की सुविधाओं और वेतन में आमूल चूल सुधार

छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट में रक्षा मंत्रालय की मांग पर सैनिकों की सुविधाओं और उनके वेतन में आमूल चूल सुधार किया गया है। दुर्गम इलाकों में ड्यूटी निभा रहे सैनिकों को भी विशेष भत्ता देने की कवायद की जा रही है।

कुल मिलाकर यह कि छठा वेतन आयोग लागू होने के बाद सैनिकों की बल्ले-बल्ले हो जाएगी। रक्षा मंत्री ए।के। एंटनी ने साफ तौर पर सैनिकों को संकेत दिया है कि केन्द्र सरकार उनकी समस्याओं और सुविधाओं के प्रति संवेदनशील है। और उनके लिए बहुत कुछ किया जा रहा है। खुद रक्षा मंत्री देश के पर्वतीय, बर्फीली और रेगिस्तानी सीमाओं पर ड्यूटी कर रहे सैनिकों के बीच जाकर उनके सुख-दुख को स्वअनुभूति करने की कोशिश की है। चाहे वह सियाचीन का दुर्गम क्षेत्र हो या फिर राजस्थान का रेगिस्तानी इलाका उन्होंने देखा है कि किस तरह से हमारे सैनिक शून्य से भी नीचे तथा 50 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक तापमान में देश की सीमाओं की रक्षा में लगे हुए हैं। इसलिए छठे वेतन आयोग में रक्षा मंत्रालय ने सैनिकों का जीवन स्तर सुधारने के लिए जो सिफारिशें की थीं, उन पर आयोग ने अनुशंसा कर दी है।

सियाचीन में ड्यूटी कर रहे सैनिकों को जिस तरह से ‘विन्टर एलाउंस’ दिया जाता है, उसी तरह से राजस्थान की तपती रेत में कठिन ड्यूटी करने वाले सैनिकों के लिये ‘समर एलाउंस’ देने की मांग बराबर उठती रही है। यघपि इस मांग पर सरकार की तरफ से ऐसा कोई संकेत नहीं आया है कि यह मांग मान ली गई है। लेकिन सैनिकों की उम्मीद कायम है।

सैनिकों की सबसे बड़ी समस्या उनके आवास को लेकर है। आवास न होने के चलते वे अपने परिवार को साथ नहीं रख सकते। वैसे भी उनकी ड्यूटी इस तरह की है कि उन्हें परिवार से दूर ही रहना है। लेकिन इस समस्या से निपटने के लिये युद्धस्तर पर कवायद की जा रही है। तकरीबन एक लाख आवास पूरे देश में बनाए जा रहे हैं। छठे वेतन आयोग में देश की तीनों सेनाओं के अधिकारियों के वेतन में भी इस कदर सुधार करने की कोशिश की गई है कि उनका पलायन रूक सके। जिस तरह से वायुसेना से पायलटों, इंजीनियरों तथा सेना से इंजीनियरों का पलायन हो रहा है यह सरकार के लिए चिन्ता का विषय हो गया है। रक्षा मंत्रालय को उम्मीद है कि छठे वेतन आयोग के लागू होने के बाद उनका पलायन रूक सकेगा।

रेलवे ने वेतन वृद्धि के अतिरिक्त पैसे का भी इंतजाम कर लिया!

छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से पड़ने वाले संभावित वित्तीय बोझ के लिए देश के सबसे बड़े रोजगारदाता रेलवे ने पहले ही इंतजाम कर लिया है। इसके लिए वह 2008-09 के रेल बजट में अपने 25 हजार करोड़ रुपए के सालाना वेतन बिल की एक तिहाई से ज्यादा की राशि का प्रावधान कर रहा है।

रेलवे बजट की प्रक्रिया से जुड़े कुछ अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर दैनिक हिन्दुस्तान को बताया कि इसके लिए बजट में 9 हजार करोड़ रुपए रखे जा रहे हैं। इससे बकाए का भुगतान भी किया जाएगा। रेलवे ने इस समूची राशि का अनुमान वित्त मंत्रालय के साथ विचार-विमर्श करके अपने आंतरिक आकलन के आधार पर किया है।

रेलवे बोर्ड के सदस्य (ट्रेफिक) वी.एन. माथुर ने कहा, "वेतन आयोग की सिफारिश से पड़ने वाले अतिरिक्त वित्तीय बोझ का सटीक आकलन सिफारिशों की घोषणा के बाद ही किया जा सकेगा।" रेल मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक ये सिफारिशें रेलवे के सालाना वेतन बिल में तकरीबन 3 हजार करोड़ रुपए का इजाफा करेंगी।

रेलवे में 14 लाख कर्मचारी हैं, जो 90 के दशक की शुरुआत के 16 लाख कर्मचारियों से कम हैं। पिछले साल लाभांश समेत लागत को निकालने के बाद रेलवे के पास अतिरिक्त नकद राशि 16 हजार करोड़ रुपए के आस-पास थी। इस साल भाड़े के मामले में प्रदर्शन के लक्ष्य को हासिल करने के अनुमान के साथ यह अतिरिक्त राशि 2008-09 में 21 हजार करोड़ रुपए जा पहुंचेगी।

अधिकारियों का कहना है कि इसे देखते हुए रेलवे वेतन आयोग की सिफारिशों से पड़ने वाले अतिरिक्त वित्तीय बोझ को वहन करने की स्थिति में होगा।

23 February, 2008

घरेलू कामगारों के लिए भी न्यूनतम मजदूरी तय होगी

केंद्र सरकार घरों में काम करने वाले कामगारों व सहायकों को भी निर्धारित मजदूरी, चिकित्सा लाभ और अवकाश का अधिकार दिलाने की कवायद कर रही है। इसके लिए जल्दी ही कानून बनाया जाएगा। प्रस्तावित घरेलू कामगार पंजीयन (सामाजिक सुरक्षा और कल्याण) अधिनियम, 2008 का मसौदा राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने तैयार किया है। फिलहाल यह महिला व बाल विकास मंत्रालय के पास विचाराधीन है।

प्रस्तावित कानून के दायरे में सभी पार्ट टाइम व फुल टाइम घरेलू कामगार, उनकी सेवा लेने वाले और रोजगार एजेंसियां आएंगी।
ये हैं घरेलू कार्य : बागवानी, बच्चों को संभालना, खाना पकाना, घर की साफ-सफाई, कपड़े धोना, बीमार व वृद्धों की देखभाल करना आदि।
सेवा लेने वाले का दायित्व : कामगार के काम शुरू करने के एक माह के भीतर जिला बोर्ड में पंजीयन कराना।
यह करेगा जिला बोर्ड
: न्यूनतम मजदूरी तय करना, विवादों का निराकरण तथा कानून पालन के लिए छापे की कार्रवाई।
कामगार का दायित्व
: स्थान बदलने पर संबंधित बोर्ड को सूचना देकर काम की नई जगह की जानकारी देना।
कामगार को क्या मिलेगा
: पंजीयन कराने पर पहचान-पत्र और जिला बोर्ड द्वारा अपने फंड से दिए जाने वाले लाभ का हक। काम खत्म करने और अगले दिन शुरू करने के बीच विश्राम के लिए कम से कम दस घंटे का समय। चिकित्सा के लिए सालाना 200 रुपए।
साल में मजदूरी सहित 15 छुटिट्यां।
नियमानुसार न्यूनतम मजदूरी।

पालन न कराने वाली प्लेसमेंट एजेंसियों के संचालकों को न्यूनतम तीन माह का कारावास। कामगारों की सेवा लेने वालों को 2,000 रुपए तक का जुर्माना।

पदोन्नति और नौकरी की नीति नियोक्ता तय करे : कोर्ट

ताजा फिसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी कर्मचारी को रखना अथवा या नौकरी से निकालना (रिटायरमेंट कहिये जनाब!) उस कंपनी का विशेषाधिकार है और अदालतों को इस तरह के मामलों में नहीं पड़ना चाहिए।

जस्टिस तरूण चटर्जी और जस्टिस एच. एस. बेदी की पीठ ने कहा कि इस बात पर अदालत को किसी तरह की राय नहीं व्यक्त करनी चाहिए कि किसे और किस चरण और स्थिति में रिटायर किया जाना चाहिए। यह पूरी तरह से नौकरी पर रखने वाले का विशेषाधिकार है। चपरासी जैसे कर्मचारी याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि उन्हें दी गई अनिवार्य सेवानिवृत्ति अवैध और भेदभावपूर्ण थी क्योंकि शीर्ष स्तर पर अधिकारियों को रखे हुए हैं।
और एक दूसरी पीठ ने यह फैसला दिया है कि कंपनी ही तय कर सकती हैं प्रमोशन का तरीका और इसके लिए कर्मचारी का चुनाव। यह किसी भी अथॉरिटी का विशेषाधिकार है। खुद कोई कर्मचारी इस बारे में अपने नियोक्ता को निर्देश नहीं दे सकता है। यह फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रमोशन से जुड़ी पॉलिसी बनाना उस संगठन का काम है।

22 February, 2008

छ्ठे वेतन आयोग पर जल्द अमल?

सरकार चाहती है कि छठे पे-कमिशन की सिफारिशों का लाभ केंद्रीय कर्मचारियों के साथ राज्य कर्मचारियों को मिलने में समय न लगे। उसने सभी राज्यों से कह दिया है कि पे-कमिशन की सिफारिशों को लागू करने के लिए वे धन का इंतजाम इस बार वार्षिक योजना में करें। केंद्र सरकार के इस कदम से यह साफ है कि पे-कमीशन का लाभ शीघ्र ही केंद्र व राज्यों के कर्मचारियों को मिलने वाला है।

नवभारत टाइम्स में आयी एक ख़बर की मानें तो, वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार छठे कमीशन की सिफारिशों को लागू करने के लिए इस बार के आम बजट में करीब 24,000 करोड़ रुपये का इंतजाम किया जा रहा है। रेलवे विभाग के लिये अलग से 9000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया जाएगा। सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार को डर है कि कमीशन की सिफारिशों को लागू करने के लिए अगर राज्य सरकारों ने धन मांगा तो मामला गड़बड़ा जाएगा। राज्य सरकारों को ज्यादा वित्तीय सहायता देने की अब गुंजाइश नहीं है। उल्लेखनीय है, पांचवें पे कमीशन की सिफारिशों पर अमल में कई राज्यों ने बहुत विलंब कर दिया था। कुछ सरकारें तो तकरीबन दीवालिया हो गई थीं।

केंद्र की इस पहल का राज्य सरकारों ने स्वागत किया है। दिल्ली समेत अन्य राज्यों ने जबाव भेजा है कि वे शीघ्र ही बैठक कर कर्मचारियों के बढ़े हुए वेतन से बढ़ने वाले खर्चे का ब्यौरा बनाएंगे। इसके बाद वार्षिक योजना में धन का प्रावधान किया जाएगा। पंजाब और हिमाचल प्रदेश ने छठे-पे कमीशन की सिफारिशों को लागू करने के लिए क्रमश : एक हजार करोड़ और 300 करोड़ रुपये का ब्यौरा केंद्र को भेज दिया है।

सूत्रों के मुताबिक सरकार चाहती है कि वह बजट में छठे पे-कमीशन की रिपोर्ट को लागू किए जाने के संबंध में ठोस घोषणा हो। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया का कहना है कि तेल कीमतों में वृद्धि और छठे पे कमिशन की सिफारिशें लागू होने के बाद केंद्र के साथ राज्य सरकारों पर भारी बोझ पड़ना तय है। बेहतर है कि इसकी तैयारी पहले ही कर ली जाए, वरना देश की अर्थव्यवस्था इससे प्रभावित हो सकती है।

21 February, 2008

छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से निराशा हाथ लगेगी?

निजी कंपनियों में दी जा रही मोटी पगार की ही तर्ज पर वेतन बढ़ने की उम्मीद लगाए केंद्रीय कर्मचारियों व अधिकारियों को छठे वेतन आयोग की सिफारिशों से निराशा हाथ लग सकती है। अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने में जुटा आयोग तनख्वाह के मामले में निजी क्षेत्रों से होड़ लगाने के मूड में कतई नहीं है।

उच्च पदों पर काबिज अधिकारियों के सरकारी नौकरी से तौबा करने के सिलसिले के बावजूद आयोग की तरफ से इस तरह की कोई भी सिफारिश आने की संभावना नहीं है। हालांकि सरकारी नौकरी छोड़ निजी क्षेत्र में जा रहे अधिकारियों को रोकना आयोग के लिए कठिन चुनौती है। इसके लिए वेतन वृद्धि के संकेत भी उसने दिए हैं। लेकिन यह तय है कि निजी कंपनियों में मुंहमांगी पगार देने की पद्धति के सामने यह वेतन वृद्धि बौनी ही साबित होगी।

दैनिक जागरण के अनुसार आयोग नौकरशाहों के वेतन में सवा तीन गुना से ज्यादा बढ़ोतरी करने के मूड में आयोग कतई नहीं है। हालांकि कर्मचारियों व अधिकारियों की सुख सुविधाओं में कुछ बढ़ोतरी करके सरकारी सेवाओं को आकर्षक करने की कोशिश आयोग की जरूर की जा सकती है। सूत्रों के अनुसार कर्मचारियों ने तो निजी क्षेत्र के बराबर वेतन वृद्धि की उम्मीद तो उसी दिन छोड़ दी थी जिस दिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कारपोरेट जगत के नायकों से अपनी कंपनियों में दी जा रही मोटी तनख्वाहों पर पुनर्विचार करने को कहा था। वेतन आयोग के एक अधिकारी ने कहा, 'निजी कंपनियों में तो 25 साल के एक युवक को भी इतनी तनख्वाह मिल जाती है जितनी सरकारी विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों को कई साल की सेवाओं के बाद भी हासिल नहीं होती।' सार्वजनिक क्षेत्र की अपनी सीमाएं हैं। हालांकि आयोग की तरफ से दी गई प्रश्नावली के जरिये अफसरों ने अपनी पगार निजी क्षेत्रों के बराबर ही किए जाने की अपेक्षा जाहिर की है।

सरकारी नौकरी में आराम? अब कहाँ?

छठे वेतन आयोग की सिफारिशों में सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाए जाने पर भले ही भ्रम की स्थिति हो लेकिन सरकारी सेवा कानून में कुछ ऐसे संशोधन संभावित हैं जो उन्हें इसके तहत मिले तमाम संरक्षणों को समाप्त कर सकते हैं।

मसलन, प्रोन्नति के हकदार वही होंगे जो अच्छे परिणाम देंगे। और तो और नकारे कर्मचारियों को नौकरी से हाथ तक धोना पड़ सकता है। इसके लिए सरकारी सेवा कानून की धारा 311 और भ्रष्टाचार के मामलों से संबद्ध धारा 197 में संशोधन के लिए आयोग पर भारी दबाव है। फाइलों के समयबद्ध निपटारे से लेकर कर्मचारियों के सरकार के खिलाफ अदालतों में जाने की प्रवृत्ति पर भी लगाम कसने की तैयारी है। कागजी कामों में कमी लाई जाएगी और छोटी सेवाओं को आउटसोर्स किया जाएगा। इसके अलावा कर्मचारी संगठनों का अधिकार भी सीमित किया जाएगा।

नीचे से लेकर बड़े साहब तक की प्रोन्नति, कार्यक्षमता, लक्ष्य और जवाबदेही के आधार पर तय होगी। वहीं तकनीकी व प्रोफेशनल कर्मियों का पलायन रोकने के लिए उन्हें सरकारी शर्तों में ढील मिल सकती है। इंजीनियर, आईटी प्रोफेशनल, डाक्टर, टेक्नोक्रेट और वैज्ञानिकों के लिए आयोग अलग से तरह से सिफारिश करने की सोच रहा है। रिटायरमेंट आयु सीमा को लेकर फिलहाल उसके पास कोई प्रस्ताव नहीं है लेकिन आयोग इस संभावना से साफ इंकार करने की स्थिति में नहीं है।

फिर बजट चर्चा, और क्या?

जब भी बजट आने वाला होता है, आम आदमी खासकर वेतन भोगी कर्मचारियों की बेताबी बढ़ जाती है। इनकी आय फिक्सड होने के कारण ये सोचते हैं कि वित्तमंत्री अवश्य ही आयकर छूट की सीमा में वृद्धि करेंगे जिससे उनकी सुख-समृद्धि में वृद्धि होगी।


इस बार उम्मीद की जा रही है कि आयकर छूट की सीमा व्यक्तिगत कर दाता की दशा में 1,10000 रूपए से बढ़कर 1,25,000 रूपए हो जाएगी, 65 साल से कम उम्र की महिलाओं के मामले में यह सीमा 1,45,000 रूपए से बढ़कर 1,60,000 और सीनियर सिटिजन के मामले में 1,95,000 से बढ़कर 2,10,000 तक हो जाएगी। ऐसा होने से व्यक्तिगत आयकर दाता पुरूषों को 1500, महिलाओं को 2500 तथा सीनियर सिटिजन को 3000 रूपए तक का फायदा होगा। वेतन भोगियों को यह भी उम्मीद है कि वित्तमंत्री स्टैंडर्ड डिडक्शन को फिर से लागू कर उनके आयकर के बोझ को कम करेंगे। स्टैंडर्ड डिडक्शन का प्रावधान कर निर्धारण वर्ष 2006-07 से हटा दिया गया था। बढ़ते हुए मेडिकल खर्च को देखते हुए लोग मेडिक्लेम पालिसियों की आ॓र आकर्षित हुए हैं। सबको उम्मीद है कि आयकर अधिनियम की धारा 80 डी के अंतर्गत इन पालिसियों पर छूट की सीमा 15,000 रूपए से बढ़ाकर 25,000 रूपए कर दी जाएगी। ऐसा होने से 10,000 रूपए पर आयकर की अतिरिक्त छूट मिल जाएगी। एक और समस्या जो सबसे परेशान करती है बैंक से पैसे निकालने पर लगने वाला शुल्क। फाइनेंस एक्ट 2005 के अंतर्गत 1.6.2005 से बचत खाते के अलावा अन्य किसी खाते से एक दिन में 25,000 रूपए से अधिक निकालने पर ट्रांजेक्शन टैक्स देना पड़ता है। हर कोई इस बोझ से मुक्ति की उम्मीद कर रहा है। पांच लाख सालाना कमाने वाला वेतन भोगी कर्मचारी यदि आयकर छूट के लिए कोई भी निवेश नहीं करता है तो उसे 1,00,000 तक आयकर चुकाना पड़ता है यानि वह साल में दो महीने आठ दिन सिर्फ टैक्स चुकाने के लिए काम करता है। वित्तमंत्री से इस बार इस वर्ग के वेतन भोगियों की उम्मीद है कि वित्तमंत्री आयकर की दरों में परिवर्तन कर 30 फीसदी की दर को ढाई लाख से बढ़ाकर पांच लाख से ऊपर की आय पर लागू करेंगे।

विकास दर के बिना नौकरी कहाँ ?

आर्थिक मुद्दों पर बेबाक टिप्पणी के लिए मशहूर योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने श्रम सुधार को सेकंडरी करार दिया है। उनका कहना है कि अगर पढ़े-लिखे नौजवानों को नौकरी देनी है तो इकॉनमी ग्रोथ रेट बढ़ाना ही सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। रोजगार बढ़ाने के लिए श्रम कानूनों में बदलाव करने की जरूरत नहीं है। अगर इकॉनमी ग्रोथ रेट 9 से 10 फीसदी के बीच कायम रखने में भारत कामयाब रहा तो श्रम कानूनों में बदलाव किए बिना ही रोजगार के ज्यादा अवसर पैदा किए जा सकते हैं।

आम बजट से ठीक पहले योजना आयोग के उपाध्यक्ष के इस बयान को काफी गंभीरता से लिया जा रहा है। इसे एक संकेत भी माना जा रहा है कि सरकार इस बजट में उद्योग जगत की श्रम कानूनों में बदलाव करने की मांग को तवज्जो नहीं देगी। मोंटेक सिंह के इस बयान को इस मसले पर सरकार का ताजा नजरिया माना जा रहा है।

मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने कहा कि बेशक यह बात सही है कि श्रम कानूनों को लचीला बनाने से रोजगार के अवसरों को बढ़ाया जा सकता है। मगर यह तभी संभव है जब इकॉनमी ग्रोथ रेट ज्यादा रहे। इसके अलावा श्रम कानूनों में बदलाव को लेकर कई तकनीकी पहलू ऐसे हैं, जिनपर सहमति बनाना जरूरी है। बिना सभी की सहमति के श्रम कानूनों में बदलाव करना तर्कसंगत नहीं रहेगा। इकॉनमी ग्रोथ रेट सीधे तौर पर प्रॉडक्शन से जुड़ा हुआ है। अगर हम श्रमिकों की प्रॉडक्शन क्षमता बढ़ाने में सफल रहे तो उससे न केवल देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी बल्कि बाजार में रौनक भी बढ़ेगी। यह रौनक आम लोगों की जेब भी भरेगी और उन्हें ज्यादा काम भी देगी। चीन में श्रमिकों की उत्पादक क्षमता बढ़ने का अहम कारण यही है। चीन में प्रति व्यक्ति उत्पादक क्षमता भारत के प्रति व्यक्ति से तीन से चार गुना ज्यादा है। यही कारण है कि चीन, बाजार और मजबूत इकॉनमी के मामले में भारत से काफी आगे है।

योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि यह बात काफी चुभती है कि देश में पढ़े-लिखे नौजवानों के पास नौकरी नहीं है। नौजवानों को उच्च शिक्षा देने के साथ-साथ ढांचागत सुविधाओं के विकास और वर्तमान श्रमिकों को हल्की-फुल्की उपयोगी ट्रेनिंग दे कर उनकी रोजगार क्षमता को बढ़ाना चाहिए। वर्तमान में बेरोजगारी दर 8 फीसदी है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या कुल आबादी के परिप्रेक्ष्य में 28 फीसदी तक पहुंच गई है। इससे साफ जाहिर है कि लोगों की वास्तविक मजदूरी बढ़ नहीं रही है। रोजगार न मिलने से युवकों में निराशा फैलती जा रही है। गरीब और अमीर के जीवन स्तर में बढ़े फर्क से सामाजिक तनाव पैदा होता है।

उद्योग जगत की अहम मांग है कि श्रम कानूनों में बड़े पैमाने पर बदलाव किए जाएं। उद्योग जगत इसमें लचीलापन चाहता है ताकि कर्मचारियों से उनकी योग्यता के अनुसार काम लेने में उन्हें परेशानी न हो। उनकी मांग यह भी है कि कारोबार में उतार-चढ़ाव को देखते हुए उन्हें कर्मचारियों की छंटनी का अधिकार भी दिया जाए।

14 February, 2008

मातृत्व बोनस राशि चार गुना बढ़ी

नौकरीपेशा गर्भवती महिलाओं के पास मुस्कुराने के लिए अब एक और वजह है। केन्द्र सरकार ने कामकाजी गर्भवती महिलाओं के लिए मातृत्व लाभ कानून 1961 में संशोधन कर बोनस राशि चार गुना बढ़ाकर एक हजार रुपए करने का निर्णय लिया है।

संसदीय कार्यमंत्री प्रियरंजन दासमुंशी ने इस निर्णय की जानकारी देते हुए बताया कि इसके लिए मौजूदा कानून में संशोधन करने के लिए संसद में विधेयक लाया जाएगा।उन्होंने कहा कि मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों में 250 रुपए की बोनस राशि अपर्याप्त थी जिसे बढ़ाकर 1,000 रुपए करने का निर्णय लिया गया है।

उन्होंने बताया कि इस निर्णय से केन्द्र सरकार को हर तीन वर्ष पर मातृत्व लाभ कानून 1961 के तहत मेडिकल बोनस में संशोधन का अधिकार मिल जाएगा और इसकी अधिकतम सीमा अधिसूचना जारी होने पर 20,000 रुपए तक होगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में १४ फरवरी को हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में यह निर्णय लिया गया।

09 February, 2008

मनमाने निर्णय की हो सकती है समीक्षा: कैट

केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) ने कहा है कि समान कर्मचारियों के बीच भेदभाव करने वाले मनमाने नीतिगत निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।

न्यायमूर्ति शंकर राजू की अध्यक्षता वाली न्यायाधिकरण की पीठ ने कहा है कि समान लोगों के बीच भेदभाव करने वाली कोई भी नीति न्यायिक समीक्षा में टिक नहीं सकती। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है। पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के एक विभागीय आदेश को दरकिनार कर दिया। इस आदेश में विशेष प्रतिनियुक्ति भत्ता केवल मुख्यालय में पदस्थ कर्मचारियों तक ही सीमित कर दिया गया है। फील्ड आफिस में कार्यरत कर्मचारियों को इससे वंचित कर दिया गया है। निर्णय में कहा कि यदि याचिकाकर्ता को पूर्व में इससे वंचित किया गया तो कैग उन्हें बकाये भत्ते का भुगतान करे।

एस मनोज कुमार, आर एस राठी, वीरेंद्र और आरएम शर्मा सहित 40 कैग कर्मचारियों द्वारा दायर याचिका में विभाग द्वारा छह अक्टूबर को जारी आदेश को चुनौती दी गई थी।

05 February, 2008

दिख सकती है वेतन बढ़ने की झलक

इस माह के अंत में पेश होने वाले बजट में केंद्रीय कर्मचारियों की पगार में बढ़ोतरी को लेकर अहम संकेत मिल सकते हैं। मार्च-अप्रैल में सौंपी जाने वाली आयोग की सिफारिशों में कर्मियों की वेतन वृद्धि की संभावना के मद्देनजर वित्त मंत्री चिदंबरम अपने बजट भाषण में उनके लिए आर्थिक प्रावधान की घोषणा कर सकते हैं। आयोग की रिपोर्ट का इंतजार कर रहे लाखों कर्मियों की निगाहें वित्तमंत्री के बजट भाषण पर टिकी रहेंगी। बजट दस्तावेजों में दबी इन जानकारियों से केंद्रीय सेवाओं में लगे करीब 33 लाख कर्मचारियों की वेतन वृद्धि को लेकर अनुमान लगाया जा सकेगा।

दैनिक जागरण की खबर है कि वित्त वर्ष के लिए तैयार किए जा रहे बजट में केंद्रीय कर्मचारियों के लिए आर्थिक प्रावधान को भी शुमार किया जाना तय है। इसके लिए वित्तमंत्री ने तमाम संबद्ध अधिकारियों, जिनमें श्रम मंत्रालय व योजना आयोग के आला अधिकारी शामिल हैं, के साथ पिछले दिनों कई दौर की बैठकें भी की हैं। इन बैठकों के दौरान हासिल हुई जानकारियों के आधार पर वित्तीय प्रावधान को अंतिम रूप देने में वित्त मंत्रालय के अधिकारी जुट गए हैं।

भले ही छठे वेतन आयोग का पिटारा मार्च-अप्रैल में खुलने वाला हो लेकिन कर्मचारियों को अपनी तनख्वाह में बढ़ोतरी के संकेत बजट में ही मिल जाएंगे, बल्कि बजट दस्तावेज में दर्शाए गए प्रावधान से वेतन वृद्धि के अनुपात का अंदाजा लगाने में भी सहूलियत होगी। इस बीच श्रम मंत्रालय में वेतन अयोग की सिफारिशों को लेकर कयास का बाजार भी गरम है। चर्चा यह चल पड़ी है कि वेतन आयोग अब अपनी रिपोर्ट जल्द से जल्द दे सकता है। माना जा रहा है कि आयोग अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप दे चुका है। केवल उसे सरकार को सौंपने की औपचारिकता पूरी करनी बाकी है।